
“कल्प भेंटवार्ता” – सूबेदार श्री राम स्वरूप कुशवाह जी के साथ
- कल्प भेंटवार्ता
- 28/08/2025
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🌺 “कल्प भेंटवार्ता” – सूबेदार श्री राम स्वरूप कुशवाह जी के साथ 🌺
नाम :- सूबेदार श्री रामस्वरूप कुशवाह जी, बेंगलुरु (कर्नाटक)
माता/पिता का नाम :-श्रीमति काशी बाई/श्री भैरों सिंह कुशवाह
जन्म स्थान एवं जन्म तिथि :- स्वरूप नगर बैतोली गंज बासौदा जिला विदिशा, मध्यप्रदेश 14/08/1970
पति/पत्नी का नाम :-श्रीमति फूलबाई कुशवाह
बच्चों के नाम :-महावीर कुशवाह,सोनू कुशवाह, चांदनी कुशवाह,
शिक्षा :-10वी
व्यावसाय :- रिटायर्ड,सैनिक
वर्तमान निवास :-बैगंलौर
आपकी मेल आई डी :- ramswarup.kushwh@gmail.com
आपकी कृतियाँ :- कविता, 2000 गीत,
आपकी विशिष्ट कृतियाँ :-पिता तो आखिर होता है पिता,मां तो आखिर मां होती।
आपकी प्रकाशित कृतियाँ :-भैरो काशी,जीवन धारा एक कल्पना।
पुरूस्कार एवं विशिष्ट स्थान :-स्पर्श भारती सम्मान, आष्ठाना कला मंच सम्मान। सोशल ऐंड मोटिवेशनल ट्रस्ट साहित्य सेवा सम्मान। कलश कारवां फाउन्डेशन साहित्य गौरव सम्मान
प्रहरी काव्य मंच भारत मकाम प्रशस्ती पत्र सेना अध्यक्ष सम्मान पत्र।। वाराणसी हिंदू विश्व विद्यालय से सम्मानित साहित्य भूषण सम्मान, साहित्य श्री सम्मान
साहित्य साधक मंच बैंगलूरू से साहित्य अक्षत सम्मान
कलश कारवां फाउंडेशन से कलश कारवां सम्मान, साहित्य पद्म
कविता प्रभा राष्ट्रीय साहित्य समूह की तरफ़ से साहित्य प्रभा श्री सम्मान, और जिया मां साहित्यक मंच से राष्ट्रवीर सम्मान। साहित्य संगम बुक से महादेवी वर्मा सम्मान ।
!! “मेरी पसंद” – प्रभु भक्ति !!
उत्सव :- संत समागम
भोजन :- शाकाहारी
रंग :- सफेद
परिधान :- पेंट शर्ट
स्थान एवं तीर्थ स्थान :-स्वरूप नगर (बैतोली)गंज बासौदा/प्रयागराज /मथुरा
लेखक/लेखिका :-मुंशी प्रेमचन्द , सुभद्रा कुमारी चौहान।
कवि/कवयित्री :-कवि प्रदीप/ममता सिंह रूद्राक्षी।
उपन्यास/कहानी/पुस्तक :- नमक का दरोगा/सुन्दर काण्ड।
कविता/गीत/काव्य खंड :-न माया �
!! “कल्पकथा के प्रश्न” !!
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आदरणीय आप वर्तमान में सुहावने मौसम के लिए प्रसिद्द, भारत की उद्यान नगरी, सूचना प्रौद्योगिकी का केंद्र, प्राचीन कल्याण पुरी, कल्याण नगर, वर्तमान बेंगलूर में निवासरत हैं, हम आपसे आपके नगर को आपके ही शब्दों में सुनना चाहते हैं।
उत्तर:- बैंगलोर एक पुरातन शहर है, मै सेना में सेवा के दौरान सन 2002में बैंगलोर पोस्टिंग आया था। मुझे बैंगलोर इतना भाया कि मैं यहां का होकर ही रह गया।पर जब के बैंगलोर और अब के बैंगलोर में ज़मीन आसमान का अंतर है।तब बैंगलोर आईटी सिटी की तरफ अग्रसर था। एक छोटा हवाई अड्डा। सड़कें भी उस समय इतनी चौड़ी नहीं थी जितनी की आज़ है। सड़कों के दोनों तरफ बड़े बड़े पेड़ शांत माहोल,
कम गाडियां थी। मौसम तो मानो जैसे स्वर्ग में आ गए हों दिन में थोड़ी धूप रात में ठंडी कभी अप्रैल के महिने में भी पंखे की जरूरत महसूस नहीं होती थी।।
फिर समय शुरू हुआ उन्नति का मैट्रो रेल का उद्घाटन तत्कालीन मुख्यमंत्री के वी कृष्णा जी थे। और सड़कें भी चौडी़ हो गई पहले शहर एक सीमित जगह में आज एक कोने से दूसरे कौने तक जाने में मोटर गाड़ी से भी घंटों लग जाते हैं।
2. आदरणीय, हम आपसे आपके बचपन की नादानी का वह प्रसंग जानना चाहते हैं जो याद करके आप आज भी मुस्कुरा उठते हैं?
उत्तर:- बचपन तो बचपन होता है।हर एक इंसान को बचपन की यादें सदा जवान बनाए रखतीं हैं। मेरी भी यादें हैं।जब मैं कक्षा तीन में पड़ता था। मेरे मित्र बारे लाल कुशवाह,विजय सिंह , बृजकिशोर शर्मा, कमलसिंह राजपूत ,हम सभी एक दिन नदी पर नहाने गये। और नहाने में इतना मशगूल हो गए कि हमें पता ही नहीं चला कि स्कूल का टाइम हों गया है।उस समय और आज़ के समय में बहुत अंतर है। हमारे गुरु जी केलाश नारायण शर्मा जी,अपनी छड़ी लेकर नदी पर आ गए और बोले तुम यहां हो, चलों स्कूल हम सभी बहुत डर गये और सभी इधर उधर भागने लगे हमलोग जल्दी से भाग कर घर आयें और वस्ता उठाकर स्कूल पहुंचे। हम सभी को हमारे गुरु जी खड़ा कर दिये। और बोले देखो बच्चों इन्हें देखो इन्हें इतना भी पता नहीं कि स्कूल जाना है।
आज तुम्हारी यही सजा है कि तुम सभी एक दूसरे के कान पकड़ कर उटठक बैठक लगाओ। और बोलों आज के बाद स्कूल से अपसेट नहीं होंगे। हम सभी आपस में कान पकड़कर उठ बैठ रहें थे। और कान छूट जाता तों हंसी आ जाती। तभी हमारे गुरु जी की छड़ी पड़ती।
हमें आज़ भी जब याद आती है तों हंसी आ जाती है।
3. आदरणीय, ग्राम स्वरूप नगर की मिट्टी ने आपके हृदय में कौन-से संस्कार रोपे, जिन्हें आप आज भी अपने जीवन की धरोहर मानते हैं?
उत्तर:- मेरे जीवन में मेरे गांव की मिट्टी का बड़ा योगदान है। मेरे गांव के लोग बड़े ही धार्मिक स्वभाव के है हमारे गांव का हर एक घर से कोई न कोई जरूर मंदिर जाता है।
हम भी शाम को मंदिर जातें थें और रोज़ सुन्दर काण्ड का पाठ किया करते थे। मंगलवार तों मानों मंदिर में मेला जैसा माहोल होता था।हर घर से प्रसाद आता था।
मंदिर प्रांगन में राम-जानकी और शंकर भगवान,हनूमान जी दुर्गा जी के मंदिर है। गांव की मिट्टी ने मुझे सेवा करना धर्म की तरफ अग्रसर किया।
4. आपके पूज्य पिता श्री भैरोसिंह जी और माता श्रीमती काशीबाई जी की स्मृतियाँ आपकी रचनाओं में किस प्रकार जीवंत होती हैं?
उत्तर:- पिता तों आखिर होता है पिता ।
मेरे माता-पिता ने मुझे इतने लाड़ प्यार से पाला सायद ही किसी और ने पाला होगा। मेरी लेखनी में हमेशा मेरे पिता की सिखलाई और मेरी मां के संस्कार ही जीवंत होते हैं। मेरे पिताजी ने जब मैं सैना में भर्ती हों कर गया तब एक बात बताई बेटा जीवन में मेरा मूल मंत्र याद रखना कभी धोखा नहीं खाओगे।वो मूल मंत्र था।बात का सच्चा और लंगोट का पक्का।वो मंत्र आज़ भी मैं जी रहा हूं।।
5. आदरणीय, धर्मपत्नी श्रीमती फूलबाई कुशवाह आपकी जीवन-संगिनी हैं। साहित्य और सैन्य जीवन की कठिन राह में उनका सहयोग और प्रेरणा आप कैसे व्याख्यायित करेंगे?
उत्तर:- मेरी पत्नी ने मेरे हर मोड़ पर साथ दिया। मेरी शादी 15साल की उम्र में हो गई थी। इसका भी एक बहुत ही रोचक प्रसंग है। एक दिन शाम को मैं अपने दोस्तों के साथ मंदिर जा रहा था। मंदिर के सामने ही मेरे एक मित्र रामलाल का घर है।उस दिन वो बड़ा ही सज़ा धजा लग रहा था। मैंने उस से पूछा क्या बात है रामलाल आज़ इतने सजें धजे हों। वो बोला रामस्वरूप मुझे देखने वाले आ रहें। मैंने कहा अरे इतना खुश होने की जरूरत नहीं है।उस लड़की से तेरी नहीं मेरी शादी होगी, और मैं मंदिर प्रांगन में चला गया। मैंने जो मजाक में कहा था। कुछ दिनों के बाद सच हों गया। मैं स्कूल से वापस आया तों देखता हूं मेरे घर मेहमान आयें हुए हैं। मां से पूछा तो मां ने कहा बेटा तुम्हारे तिलक के लिए आयें है। मैंने कहा मां मुझे शादी नहीं करनी। मां बोली बेटा गांव में सभी को बुलाया है। हमारी इज्जत का सवालहैं। मेने कहा वो तो कभी देखने भी नहीं आयें। सीधे तिलक मुझे भी नहीं बताया। मां बोली सब इतनी जल्दी हुआ कि समय नहीं मिला। चलों तैयार हो जाओ तिलक का समय हों रहा है। तिलक हुआ उसके बाद मेरी मां जी का देहांत हो गया। फिर चर्चा होने लगी लड़की का पाओ ख़राब है इसीलिए मां जी का देहांत हुआ है। मैंने कहा नहीं अब मां तो लोट कर नहीं आयेगी।पर जो मेरी मां ने रिसता तय किया है वो ही शादी होगी,और तय समय पर शादी भी हुई और आज़ तक निभा रही हैं।
6. आदरणीय, भारतीय थलसेना के ए.एस.सी. कोर में ३० वर्षों का अनुशासनबद्ध सेवा जीवन आपने जिया। इस सैनिक पृष्ठभूमि ने आपकी लेखनी को कौन-सा विशिष्ट स्वर प्रदान किया?
उत्तर:- सैनिक जीवन में हर एक जगह जाने का मौका मिला और हर एक भाषा के लोगों से मिलने का मौका मिला। सेना में हम सभी भारतीय होते हैं न हिन्दू न मुसलमान न सिख न ईसाई। सिर्फ भारतीय। और देश सर्वोपरि होता है अपनी जान से भी ज्यादा देश को चाहते हैं सैनिक देश भक्ति देश प्रेम।
7. आदरणीय, Ldct, ADlC, PT एवं Drill जैसे कठोर सैन्य प्रशिक्षण कोर्स पूर्ण कर आपने अपने जीवन को लोहे की धार दी। क्या यह कठोरता आपके काव्य में भी किसी रूप में परिलक्षित होती है?
उत्तर:- आज जो हूं सेना और सैनिक जीवन में जो कोर्स किये उन्हीं की बदोलत हूं। मुझे वरिष्ठ नागरिक काव्य मंच कर्नाटक इकाई का अध्यक्ष पद भी उन्हीं प्रषिक्षणों के कारण मिला ।
8. आपकी एकल कृतियाँ “भैरौ काशी” और “जीवन धारा – एक कल्पना” आपके जीवन के किस पक्ष को सबसे गहराई से उद्घाटित करती हैं?
उत्तर:- मेरी एकल पुस्तके भक्ति को सब से ज्यादा उद्घाटित करती हैं । जीवन कैसे जीना है।सब काम करते हुए प्रभु भक्ति करनी है। मेरी किताबें लोगों को मार्गदर्शन करतीं हैं।।
9. १७ साझा-संग्रहों में आपकी रचनाएँ संकलित हुईं। क्या आप इस सहभागिता को सामूहिक साहित्य साधना का रूप मानते हैं?
उत्तर:- बिल्कुल मिलकर संघटित रूप से जो भी कार्य किया जाता है उत्तम हीं होता है और एक दूसरे को पड़ कर खुद को निखारने में मदद मिलती है।
10.भविष्य की साहित्यिक योजनाओं में आप किन विषयों या शैलियों को लेकर विशेष रूप से सक्रिय होना चाहते हैं?
उत्तर:- भक्ति रस को।
11. आज के समय में हिन्दी साहित्य की सबसे बड़ी चुनौती आप किसे मानते हैं—पाठकों की घटती रुचि, बाज़ारवाद, या रचनात्मकता का संकट?
उत्तर:- बाज़ारवाद,रचनात्मकता दोनों ही चुनौती है।
12. वर्तमान में सोशल मीडिया साहित्य का प्रमुख मंच बन चुका है। क्या यह प्रवृत्ति हिन्दी साहित्य की गम्भीरता को हानि पहुँचा रही है या इसके विस्तार का साधन बन रही है?
उत्तर:- विस्तार का साधन वन रहीं हैं।
13. आज हिन्दी साहित्य में ग्रामीण चेतना, स्त्री लेखन और दलित विमर्श की धाराएँ प्रखर हो रही हैं। आप इन नवधाराओं को किस प्रकार देखते हैं?
उत्तर:- बहुत ही सराहनीय पर मर्यादा का ध्यान रखना चाहिए ।
14. कल्पकथा साहित्य संस्था जैसे मंचों की भूमिका के संदर्भ में— क्या आप मानते हैं कि साहित्य की चेतना अब पुनः जाग रही है?
उत्तर:- बिल्कुल सही बात है मैं मानता हूं कि कल्पकथा साहित्य संस्था जैसी संस्थाऐ , साहित्य के प्रति समर्पित और साहित्य को बढ़ाने में बहुत ही सराहनीय कार्य कर रही है। हमारे देश की धरोहर है साहित्य। जिसमें रामायण महाभारत,बेद पुरान श्रुति, उपनिषद,आदि
15. आप अपने समकालीन लेखकों, दर्शकों, श्रोताओं, पाठकों, को क्या संदेश देना चाहेंगे?
उत्तर:- मैं चाहता हूं कि लेखक ज्ञान वर्धक और मर्यादा में रहकर लिखें चंद पैसों के लिए, फूहड़ गीत आदि में अपनी लेखनी को बर्बाद न करें। कुछ ऐसा लिखने की कोशिश करें,कि हमारे जाने के बाद भी लोग उससे लाभान्वित हो।
न कि स्तेमाल करके फेंक दें।दर्शकों, श्रोताओं, और पाठकों से भी अनुरोध करता हूं कि आप जैसा पड़ना सुनना चाहते हों लेखक वैसा ही लिखते हैं।आप अच्छे साहित्य पढ़ें और अच्छी फिल्में देखें। फ़ूहड़ साहित्य फ़ूहड़ फिल्मों को न देखें।तो एक दिन फ़ूहड़ फिल्में बनेंगी हीं नहीं। अपनें आने वाली पीढ़ी को संस्कारवान बनाएं। और ऐ तभी संभव है जब हम संस्कार बान होंगे।।
जय हिन्द।।
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https://www.youtube.com/live/zUVt1oik-z0?si=GPm6qeiMfFCRppWN
🙏
कल्प भेंटवार्ता प्रबंधन 🙏
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