Dark

Auto

Light

Dark

Auto

Light

u117-WhatsApp-Image-2025-09-04-at-18.10.58

“कल्प भेंटवार्ता:- श्रीमती ज्योति व्यासी, जबलपुर”

कल्प भेंटवार्ता

 

॥ ” मेरा परिचय !!

 

नाम :- श्रीमती ज्योति व्यासी

पिता :- स्व. श्री एस. पी. दुबे

माता :- श्रीमती शशि दुबे

जन्म स्थान :- नरसिंहपुर

जन्म तिथि :-21 अगस्त 1976

पति :- श्री आनन्द कुमार प्यासी

बच्चे का नाम: – अजेय कुमार प्यासी (1 बेटा)

शिक्षा :- बी. एम एम ए. (हिन्दी, समाजशास्त्र, राजनीतिशास्त्र, शिक्षा, बी. एड.

व्यवसाय:- शिक्षिका

वर्तमान निवास नेपियर टाऊन जबलपुर

आपकी कृतियाँ:- साँझा संकलन – 1वर्तिकायन

2.सशक्त हस्ताक्षर

3.नारी तेरे रूप अनेक

4.बुंदेली साहित्य

अनेक संस्थाओं द्वारा विभिन्न पुरस्कार : सशक्त साहित्य सेवा सम्मान, शब्द चेतना अलंकरण, बुंदेली सृजन सम्मान, काव्य प्रतिभा सम्मान, काव्य कला रत्न सम्मान, काव्य चेतना अलंकरण, साहित्य रत्न सम्मान, विशिष्ट सृजनकार सम्मान (कल्पकथा )

ई पत्रिका – मोहनीमय!!

 

 

“मेरी पसंद” !!

 

उत्सव:-वैसे तो हम हम सारे उत्सव धूमधाम से मनाते है। परन्तु जब पसंद की बात है तो नवरात्रि एवं उसके बाद का दशहरा उत्सव अंत्यन्त प्रिय है।

भोजन:- पारम्परिक भोजन जो प्रायः घर में बनता है। प्रयास यह रहता है कि बिना प्यास लहसुन का भोजन हो तो अच्छा है।

रंग :- लाल

परिधान :-  साड़ी

स्थान :- मनाली

तीर्थस्थान :- भोलेनाथ की नगरी उज्जैन

लेखक – मुंशी प्रेमचंद

कवि दिनकर / हरिवंशराय बच्चन

उपन्यास :- कर्मभूमि

कहानी :-  प्रेमचंद रचित सभी कहानियां

कविता :- हम पन्छी उन्मुक्त गगन के

 

!! ” कल्पकथा के प्रश्न ” !!

 

  1. आपके जीवन की प्रथम गुरुजनों में माता पिता का संस्कार और पति का सहयोग रहा है। क्या आप हमें यह बता सकती है कि परिवार की यह जीवन जीवनदायिनी उर्जा आपकी साहित्यिक यात्रा का मूलाधार किस प्रकार बनी !

उत्तर:-  परिवार हर व्यक्ति के जीवन में पहला विद्‌यालय होता है। माता पिता प्रथम गुरु होते है। माता पिता के ‌द्वारा दिये संस्कार आचरण ही हमारी सोच और सृजनात्मकता का मूल आधार है। माता पिता ने अपने जीवन जीने में किस प्रकार कठिनाइयों का सामना करके उससे लड़ने की शक्ति संचित की, उनका जीवन के प्रति दृष्टिकोण साहित्यकार मन में संवेदना का संचार करती है। साहित्यिक यात्रा में जीवनसाथी का सहयोग महत्वपूर्ण होता है। उनका भावनात्मक और व्यवहारिक सहयोग ही है जिससे सुमधुर वातावरण और मानसिक शान्ति से यात्रा अनवरत चल रही है। साहित्यिक यात्रा की नींव पारिवारिक सहयोग से ही मजबूत बनती है।

 

  1. आप वर्तमान में संस्कारधानी भेड़ाघाट, महर्षि जाबाली की तपोस्थली प्राचीन जबालिपुरम् वर्तमान जबलपुर में निवासरत है। हम आपसे आपके नगर को आपके ही शब्दों में जानना चाहते है।

उत्तर:- महर्षि जबाली की तपोभूमि वर्तमान में जबलपुर नाम से जानी है। प्राचीन नाम जबालिपुरम् था । सांस्कृतिक और आध्यात्मिक दृष्टि से यह नगर अद्वितीय है। और भौगोलिक दृष्टि डाली जाये तो यहाँ पर ईश्वर की विशेष कृपा है। काले काले पहाड़ों के अतिरिक्त भेड़ाघाट सफेद संगमरमरी वादियों से घिरा है इन्ही संगमरमरी चट्टानों के मध्य नर्मदा की अविरल धारा बहती है और इसकाप्रबल प्रवाह धुआँधार के रूप में आकर्षक है। सफेद संगमरमरी वादियों में प्रातः पड़ने वाली सूर्य की किरणों की आभा आँखों को ही नहीं आत्मा को भी छू जाती है। शरद ऋतु में पड़ने वाली शरद पूर्णिमा की रात में भेड़ाघाट को संगमरमरी का सौन्दर्य अत्यन्त नयनाभिराम होता है।जबलपुर को संस्कारधानी के नाम से भी जाना जाता है। संस्कारधानी कहे जाने का कारण यहाँ की संस्कृति और परम्परा है। माँ नर्मदा के हर तट का अपना महत्व है। भेड़ाघाट में ही चौसठ योगनी एक प्राचीन मंदिर है। इस मंदिर के प्रागंण में चौसठ पाषाण प्रतिमा तो है ही मध्य में शिव पार्वती की नंदी पर सवार प्रतिमा से सुशोभित शिवालय है। कचनार सिटी बहुत ऊँची शिव प्रतिमा के कारण प्रसिद्ध है। यह प्रतिमा लगभग 76 फीट ऊँची है। गढ़ाफाटक की महाकाली की तो महिमा ही निराली है वही सदर की काली के विषय में कहा जाता है कि आज भी उनके शरीर से तेज के कारण स्वेद उत्पन्न होता है। गौरीघाट के रामलला और खारीघाट के हनुमान जी का मंदिर धार्मिक स्थल आस्था का केन्द्र है। उत्सव धर्मी जबलपुर हर उत्सव को पूर्ण सम्पर्ण श्रद्धा भक्ति के साथ मनाता है इस समय गणेश उत्सव पूरे जबलपुर में पूरे उत्साह से मनाया जा रहा गणेश पंडाल की शोभा दर्शनीय है। मदन महल की पहाड़ी पर स्थित मदन महल का किला ऐतिहासिक महत्व को बताता है वहीं प्रकृति का अद्‌भुत निर्माण संतुलन शिला के रूप में देखने मिलता है। बावन तालाबों का शहर रहा है यह जबलपुर । हर तालाब की अपनी कहानी है।

  1. हम आपसे आपके बचपन की नादानी का वह प्रसंग जानना चाहते है जो याद करखे आप आज भी मुस्कुरा उठते है? अब बचपन की बात है तो बचपन नादानियों से भरा हुआ

उत्तर:- बचपन की बात है तो बचपन नादानियों  से भरा हुआ  होता  है। बचपन में अनेक नादानी के प्रसंग हुये ।पर मैं बचपन का ऐसा किस्सा आपको बता रही हूं जिससे मन आज भी मुस्कुरा देता है। हुआ यूँ कि टी वी. में एक विज्ञापन आता था ‘दाग अच्छे होते है।” बस दाग की अच्छाई पर मन दौड पड़ा। स्कूल की सफेद यूनीफॉर्म में कई चीजों के दाग लगाये और सोचा दाग अच्छे है पर फिर स्कूल में शिक्षकों की डॉंट और घर आकर माँ की डाँट आज भी नहीं भूलती और मन मुस्कुरा उठता है कि दाग अच्छे होते हैं।

 

  1. जीवन की धूप छाँव आपके अंतर्गन में किस रूप में स्ची बसी है जो आज आपकी लेखनी में भावनाओं की विविध आभा बनकर प्रकट होती है?

उत्तर :- इस उम्र तक आते आते तक जीवन की धूप छाँव का अच्छे से अनुभव किया और आत्मसात भी किया। यह धूप छाँव अन्तर्मन में रची बसी है। अंतर्मन कभी तो प्रेम आनंद पुष्पों का मधुवन होता है तो कभी कीकर की क्यारी बन जाता है

जीवन की धूप छाँव ने मेरी लेखनी को  भावनाओं की अभिव्यक्ति किया बल्कि हर बार नवीन गंध रंग और स्पंदन भी दिया है।

 

  1. शिक्षा के चार विषयों – हिन्दी, समाजशास्त्र, राजनीतिशास्त्र और शिक्षा शास्त्र में स्नातकोत्तर ने आपके चिंतन और काव्य चेतना को किस प्रकार चतुर्दिक दृष्टि और बहुआयाम परिपक्वता प्रदान की हैउत्तर – शिक्षा और विविध विषयों ज्ञान एक संवदेनशील मन की केवल ज्ञान ही नहीं देता बल्कि व्यक्ति को चतुर्दिक दृष्टि और बहुआयामी परिपक्वता प्रदान करता है। । हर विषय ‘अपनी विशेषताओं से से पूर्ण होता है। यदि हिन्दी साहित्य ने मुझे शब्दों का वैभव, अभिव्यक्ति की संवेदनशीलता तथा काव्य के पठन पाठन, काव्य की गहरायी दी है तो समाजशास्त्र ने जीवन और समाज में सामंजस्य बनाने की समझ दी है मनुष्य सामाजिक प्राणी है तो समाज में व्यवाहारिकता का पालन आवश्यक होता है। सत्ता और शासन का ज्ञान राजनीति शास्त्र से प्राप्त किया। आज शिक्षा के क्षेत्र में विगत 24 वर्षों से है तो शिक्षा शास्त्र का गूढ अर्थ समझने का प्रयास कर रहे और शिक्षा का महत्व ,ज्ञान की सार्थक को समझाने का प्रयास कर पा रहे है शिक्षा शास्त्र का संदेश है कि ज्ञान बांटो तभी ज्ञान बढेगा। उक्त विषयों को काव्य की धारा से जोडकर कुछ स्चनायें लिखी है अतः रचनाओं में परिपक्वता आयी है। मेरी काव्य चेतना सिर्फ भावना ही नहीं यथार्थ से जुड़ी है आदर्श से जुड़ी है

 

  1. नचिकेता उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में विगत श्य वर्षों से हिन्दी व्याख्याता के रूप में आपकी भूमिका न केवल अध्यापन की है बल्कि विद्यार्थियों में साहित्य-संस्कार जाग्रत करने की भी है। आप इसे साहित्य सेवा का विस्तार कैसे मानती है?

उत्तर:-  विगत 24 वर्षों से नचिकेता वि‌द्यालय में विद्यार्थियों को हिन्दी विषय का ज्ञान दिया एक शिक्षक होने के कारण शालेय पुस्तक के पाठ्‌यक्रम को पूर्ण कराना मेरा कर्तव्य है पर उसके अतिरिक्तविद्याधियों में साहित्य के प्रति अनुराग जगाने का प्रयास सदैव करती हूँ । कक्षा बारहवीं के पाठ्‌यक्रम में एक पाठ है ‘जूझ’। जिसमें एक बालक शिक्षक के काव्य और काव्य के गायन शैली से प्रभावित होकर काव्य लेखन सीखता है। [मराठी के प्रख्यात कथाकार डॉ. आनंद यादव का बहुचर्चित आत्मकथात्मक उपन्यास  जिस प्रकार एक साहित्यकार अपने लेखन से समाज को दिशा देता है उसी प्रकार एक शिक्षक अपने विद्यार्थियों को बहुमुखी प्रतिभा का धनी बनाने का प्रयास करता है।

 

  1. लगभग 25 वर्षों से सतत लेखन साधना के इस मार्ग पर चलते हुए आपने ‘किन-किन भावभूमियों को स्पर्श किया और कौन सा विषय आपको सबसे निकट और आत्मीय प्रतीत हुआ ?

उत्तर:- प्राकृतिक वातावरण सदा से ही सभी को आकर्षित करता है तो प्रकृति को रचना का विषय बनाया सामाजिक यथार्थ की पृष्ट भूमि में भी उतरने का प्रयास किया पर काव्य यात्रा का जो पक्ष अत्यन्त प्रभावी रहा वह है मानव संवेदनाएँ । मानव मन ही काव्य चेतना का मुख्य अंग है  यदि रचनाओं में मनुष्य के हृदय की पीडा, सुख-दुःख जैसी संवेदनाये होती है वही मन के करीब होती है।।

 

8 :- 13 सांझा संकलनो में आपका योगदान हिन्दी साहित्य की सामूहिक चेतना का हिस्सा बन चुका है। आपको क्या लगता है – सांझा संकलन की परंपरा नवोदित स्पं स्पं वरिष्ठ लेखकों के मध्य सेतु का कार्य किस सीमा तक कर वाली है?उत्तर  :- सांझा संकलन की परम्परा साहित्यिक परिदृश्य में विशेष भूमिका निभाती है। सांझा संकलन वास्तव में नवोदित और वरिष्ठ लेखकों के बीच सेतु ही नही बल्कि साहित्यिक परिवार की सांझा विरासत बन जाता है जहाँ पर नवोदित लेखक ‘अपनी रचनाओं को प्रतिष्ठित लेखकों के साथ देखने का अवसर पाता है वही वरिष्ठ लेखकों के अनुभव और परिपक्वता को नई पीढ़ी तक पहुंचाने का सशक्त माध्यम है। यह सेतु सांझा संकलन को प्रभावी बना सकता जब इसका सम्पादन सजगता और ईमानदारी से ही।

 

9:-  “सशक्त साहित्य सेवा सम्मान” से लेकर साहित्य रत्न सम्मान” तक अनेक अलंकरण आपके कृतित्व को आलोकित करते हैं। किन किन ह्मणों में आपको लगा कि यह सम्मान आपके लेखन का नहीं, बल्कि समाज की सामूहिक चेतना का अभिनंदन है?

उत्तर :- यह अत्यन्त गौरव का विषय होता है जब सम्मान एवं अलंकरण प्राप्त होता है। जब किसी रचना हेतु सम्मान प्राप्त हुआ तो ऐसा कभी नहीं लगा कि यह मेरी व्यक्तिगत उपलिब्ध है। यह सम्मान समान की सामूहिक चेतना और चेष्टा का अभिनंदन लगा । सच तो यह है कि साहित्कार अकेले साहित्य सृजन नहीं करता है। लेखक समाज से विषय लेता है तभी सृजन कर पाता है। अतः सम्मान व्यक्तिगत नहीं अपितु समाज की आत्मा का सम्मान है।

 

  1. आदिकाल से लेकर आधुनिक काल तक हिन्दी साहित्य की विविध धाराओं ने समाज को दिशा दी है। आपके मत में भक्ति साहित्य और समकालीन साहित्य में क्या समानताएं और भिन्नताएँ दृष्टिगोचर होती हैउत्तर: काल कोई भी हो सदा ही समाज को नयी दिशा प्रदान करता रहा है। यदि हम पद्य साहित्य के इतिहास पर दृष्टिपात करें तो विदित होगा कि हर काल की रचनायें उस काल का सटीक वर्णन करती है आदिकाल जिसे वीरगाथा काल कहा जाता है इस काल की समस्त रचनायें वीर रस से परिपूर्ण रही। तो भक्तिकाल में भक्ति की धारा प्रवाहित रही। श्रृंगार रस से ओतप्रोत रचना रीतिकाल की पहचान रही। आधुनिक काल की स्चनायें भी समय की सार्थकता बता रही है। भक्ति साहित्य और समकालीन साहित्य दोनों ही समाज के पथ प्रदर्शक है। भक्ति साहित्य ने हृदय को आतंरिक शक्ति और विश्वास दिया है. वही समकालीन साहित्य सामाजिक राजनीतिक चेतना का यथार्थ आईना है। भक्ति साहित्य और समकालीन साहित्य में यदि समानता देखी जाये तो उस समय भी मानव केन्द्रित दृष्टि रही। ईश्वर के प्रति श्रद्धा आस्था, संवेदनशीलता एवं सामाजिक जागरुकता परिलक्षित होती थी समकालीन साहित्य में में भी उक्त विशेषताएँ दिखती है। इससे इतर है तो भक्तिकाल में लोक भाषा एवं सहज प्रतीकों का प्रयोग होता था वर्तमान में मुक्त छंद में सहजता प्रतीत होती है। भक्ति साहित्य भक्ति व भगवान के प्रति रुझान बढ़ाने का काम कर स्वर्णयुग के नाम से विभूषित हुआ । समकालीन साहित्य कैश्वीकरण, तकनीक और पर्यावरण पर स्वर्ण अक्षर अंकित करने का साधन है।

 

11- आज का साहित्यकार समाज की संवेदनाओं का प्रहरी है। आपको क्या लगता है कि समकालीन हिन्दी साहित्य आज के सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक प्रश्नों के समाधान की ओर कितना अग्रसर है?

उत्तर – साहित्य एवं समाज दोनों अटूट रूप में एक-दूसरे से बंधें हुए है ।  साहित्य समाज में ही पल्लवित, पुष्पित तथा विकसित होता है। समाज निर्माण के पश्चात साहित्य की रचना की जाती है। समाज तथा साहित्य एक-दूसरे पर अपना प्रभाव डालते है साहित्य समाज की जीवनदायिनी शक्ति के रूप में विराजमान है। साहित्य समाज को प्रेरणा देता है। समाज में फैली विसंगति के कारण उत्पन्न होने वाले हर प्रश्न का उत्तर साहित्य के माध्यम से देना सुगम होता हे है। राजनीति के क्षेत्र में भी साहित्य जनता में जागरुकता लाने अहम भूमिका का निर्वाह करता है। मुंशी प्रेमचंद का उपन्यास “सोज वतन” जन जागरुकता लाने वाला था जिसे ब्रिटिश शासन ने प्रतिबंधित कर दिया था सांस्कृतिक जड़ो और लोकपरंपराओं से जुडा साहित्य हर मन को प्रसन्न कर देता है।

 

12- कबीर, तुलसी, सूर और मीरा जैसे संत कवियों ने साहित्य को धर्म दर्शन और भक्ति की शक्ति से सम्पन्न किया। आज के युग में उस परंपरा से जुड़कर आधुनिक साहित्यकार किस प्रकार अपने लेखन में आध्यात्मिक चेतना को जीवित रख सकता है?

उत्तर- आधुनिक समय में परिस्थितियाँ बदल गई है। आज का समाज विज्ञान, तकनीक और वैश्वीकरण के प्रभाव में है। संत कवियों ने भक्ति और धर्मदर्शन से साहित्य को अमर किया। आज का साहित्यकार यदि अपने लेखन में मानवता करुणा और नैतिक मूल्यों को जीवित रखे तो वह उसी आध्यात्मिक परम्परा को आधुनिक संदर्भ में आगे बढ़ाता है।

 

  1. स्त्री विमर्श आज के साहित्य का एक सशक्त आयाम है। महिला साहित्यकार के रूप में आप इसे परंपरा, सामाजिक यथार्थ और आत्माभिव्यक्ति के परिपेक्ष्य में किस रपेक्ष्यू में किस दृष्टि से देखती है।

उत्तर. नारी विमर्श आज के साहित्य की केवल एक प्रवृत्ति नही बल्कि समाज और साहित्य की अनिवार्य चेतना है। एक महिला साहित्यकार के रूप में में जो देख रही हूँ परंपरा के परिपेक्ष्य में भारतीय साहित्य की परम्परा में स्त्री अकसर हाशिये पर रही। वह कभी प्रेरणा स्त्रोत के रूप में चित्रित हुई ,कभी त्याग की मूर्ति, कभी मात्र सौन्दर्य का प्रतीक स्त्री विमर्श इस मौन को तोड़कर स्त्री को विषय नहीं स्वयं लेखक के रूप में प्रस्तुत करते है। सामाजिक यथार्थ के परिपेक्ष्य में – समकालीन समाज में स्त्री केवल घर तक सीमित नहीं बल्कि हर क्षेत्र में सक्रिय है। साहित्य में नारी विमर्श इन वास्तविकता को उजागर कर जागरुक बनाता है।नारी विमर्श का सबसे महत्वपूर्ण पक्ष यह है कि स्त्री अब स्वयं अपनी बात कह रही है। उसके अनुभव, उसकी इच्छाएँ, उसके सपने और उसकी पीडाएँ अब किसी और के शब्दों की अभिव्यक्ति नहीं बल्कि उसके अपने स्तर में अभिव्यक्त हो रहे है स्त्री विमर्श आज के साहित्य का केवल आयाम ही नहीं बल्कि नव चेतना और जीवन रस है।

 

14.कल्पकया साहित्य संस्था जैसे मंचों की भूमिका के संदर्भ में क्या आप मानते है कि साहित्य की चेतना अब पुनः जाग रही है?

उत्तर :कल्पकथा साहित्य संस्था जैसे मंचों की भूमिका केवल आयोजन या रचनाओं के पाठ तक सीमित नहीं है बल्कि यह साहित्यिक नव जागरण का संकेत है- ये संस्थाएँ लेखकों को अभिव्यक्ति का अवसर देती है, नए रचनाकारों को प्रोत्साहित करती है। पाठकों और लेखकों के बीच सेतु बनकर वे यह प्रमाणित करते है कि साहित्य अब समाज को दिशा देने और मानवीयसंवेदनाओं को जगाने की शक्ति रखता है।

 

  1. आप अपने समकालीन लेखकों, दर्शकों, श्रोताओ, पाठकों को क्या संदेश देना चाहेगें ?

 उत्तर :- समकालीन लेखकों, दर्शकों, श्रोताओं, पाठकों के लिए मेरा संदेश:- 

“मैं अपने साथियों से बताना चाहूंगी कि साहित्य सिर्फ मनोरंजन का माध्यम नहीं है। साहित्य संवेदना और मानवीय मूल्यों को बनाये रखने की मजबूत कड़ी है लेखक बंधुओ से आग्रह है कि अपनी स्चनाओं में यथार्थ को स्थान दें ताकि वह मानव मन में अंकित हो सके । दर्शकों ,श्रोताओ, पाठकों से निवेदन है कि वे कला साहित्य में छिपे संदेशों और विचारों को आत्मसात करें । उन्हे जीवन के आचरण में उतारें।

 

 

संपूर्ण भेंटवार्ता कार्यक्रम यूट्यूब पर लिंक द्वारा देखें।

https://www.youtube.com/watch?v=5_LJgpr5Zq4

 

 

आभार:- “कल्प भेंटवार्ता प्रबंधन”

 

 

 

 

कल्प भेंटवार्ता

Tags:

Leave A Comment