
“कल्प भेंटवार्ता” – श्री राधेश्याम साहू “शाम” जी के साथ
- कल्प भेंटवार्ता
- 18/09/2025
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🌺 “कल्प भेंटवार्ता” – श्री राधेश्याम साहू “शाम” जी के साथ 🌺
नाम :- श्री राधेश्याम साहू “शाम” कोरबा (छग)
माता/पिता का नाम :- पिता_ स्व. श्री एस. एल. साहू
माता_ स्व. कमला देवी साहू
जन्म स्थान एवं जन्म तिथि :- ०३/०६/१९७६ ग्राम देवरी, जिला कोरबा (छ. ग.)
पति/पत्नी का नाम :- श्रीमती अन्नपूर्णा साहू (गृहलक्ष्मी)
बच्चों के नाम :- १.निखिल सोमन (सॉफ्टवेयर इंजीनियर)
२. निखार सोमन (सिविल इंजीनियर)
शिक्षा :- एम. ए. हिंदी साहित्य, अंग्रेजी साहित्य
डिप्लोमा इन एलीमेंट्री एजुकेशन
व्यावसाय :- उच्च वर्ग शिक्षक
वर्तमान निवास :- ४३, हाउसिंग बोर्ड कॉलोनी सेमीपाली (कोरबा) ४९५४४७
आपकी मेल आई डी :- authorsham001@gmail.com
आपकी कृतियाँ :- अक्षांश- द लेजेंड ऑफ थ्री वारियर्स (उपन्यास)
एरो- सीक्रेट इंटेलिजेंस यूनिट (उपन्यास)
पोखरा- द सर्जिकल स्ट्राइक (उपन्यास)
पीतल का प्रेम (उपन्यास)
तुम्हारी खुशी (उपन्यास)
द लेजेंड ऑफ केके (उपन्यास)
डार्क शेड्स ऑफ लव (उपन्यास)
रीड अबाउट राइटर्स (साक्षात्कार श्रृंखला)
नावक के तीर (सूक्ष्मकथा संग्रह)
हिडेन लव स्टोरीज (कहानी संग्रह)
मेरी कविता (कविता संग्रह)
आपकी विशिष्ट कृतियाँ :- छाया (उपन्यास)
आपकी प्रकाशित कृतियाँ :- हमसाया (उपन्यास) इलेवन शेड्स ऑफ लव (कहानी संग्रह)
पुरूस्कार एवं विशिष्ट स्थान :- विभिन्न साहित्यिक संस्थाओं से सम्मान प्राप्त।
!! “मेरी पसंद” !!
उत्सव :- होली
भोजन :- चांवल, दाल, सब्जी
रंग :- नीला
परिधान :- पेंट शर्ट
स्थान एवं तीर्थ स्थान :- पसंदीदा स्थान – अपना स्कूल,
तीर्थ स्थान – बनारस
लेखक/लेखिका :- निर्मल वर्मा /अमृता प्रीतम
कवि/कवयित्री :- रामधारी सिंह दिनकर / महादेवी वर्मा
उपन्यास/कहानी/पुस्तक :-
उपन्यास, एक चीथड़ा सुख (निर्मल वर्मा)
कहानी, डेढ़ इंच उपर (निर्मल वर्मा)
पुस्तक, छाप तिलक सब छीनी (सुनीता सिंह)
कविता/गीत/काव्य खंड :- दिनकर जी की रचना “रश्मिरथी” एवं हरिवंशराय बच्चन जी द्वारा रचित “मधुशाला”
खेल :- क्रिकेट
फिल्में/धारावाहिक (यदि देखते हैं तो) :- सभी जासूसी फिल्में व धारावाहिक
आपकी लिखी हुई आपकी सबसे प्रिय कृति :-
मेरी एक कविता है जो मुझे अत्यंत प्रिय है। इस कविता में प्यार में हारी, अवसादग्रस्त किसी लड़की को संबोधित करते हुए उसे पुनः जीवन पथ पर आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया गया है।
देखिए,
प्रेम राह पर चलते-चलते, हारे पग जब रूधिर बहाए।
नैना निशदिन नीर से भरे, अंतस के न प्यास बुझाए।।
नाम रटो, चीत्कार करो पर, न वो तुमको दरस दिखाए।
जिसके लिए अन्न जल त्यागे, आकर न वो गले लगाए।।
उठो, चलो, पटको वो गठरी, बने बोझ जो कमर झुकाए।
फेर नजर लो उस सूरत से, जो आँखों से अश्रु बहाए।।
मलो, लाली फिर उन होठों पर, जो पपड़ी सा सूखा जाए।
गूंथो, पुष्प उन केशों पर, विरह गति जो रूखा जाए।।
नित नवीन श्रृंगार करो तुम, रहो न ऐसे यूँ मुरझाए।
समय उन्हें दो मूल्य जो जानें, उसे नहीं जो तुम्हें रुलाए।।
लिखो काव्य कोई उन रातों में, जिन रातों में नींद न आए।
ले कूची तुम बनो चितेरी, सपने कागज पर बिखराए।।
फूलों के कुछ पौधे रोपो, जो खुशबू से मन महकाए।
घूमो, देखो, नदिया जंगल, पर्वत खड़े बाँह फैलाए।
एक नहीं बस वो दुनिया में, है जो तुम पर लाड लुटाए।
मत भूलो उस मात पिता को, बैठे हैं जो आस लगाए।
सुनो, समय अनमोल बड़ा है, कहीं निरर्थक बीत न जाए।
क्षण क्षण का सम्मान करो तुम, गया समय फिर लौट न आए।
लक्ष्य चुनो कुछ ऐसा ऊँचा, सारी दुनिया माथ नवाए।
करो जतन कुछ यूं जीवन का, विश्व पटल पर जो छा जाए।।
!! “कल्पकथा के प्रश्न” !!
प्रश्न 1. आदरणीय शाम जी, बाल्यकाल से लेकर शिक्षा जगत की ऊँचाइयों तक का आपका यह जीवन-पथ किन प्रेरक घटनाओं और स्मरणीय क्षणों से अभिसिंचित रहा?
उत्तर:- सर्वप्रथम आपको और कल्पकथा परिवार को असीम धन्यवाद कि आप ने इस भेंटवार्ता के लिए मुझे आमंत्रित किया। बात करूं अपने जीवन की तो, मेरा जीवन-पथ बाल्यकाल से ही संघर्षपूर्ण रहा है।
मैं एक किसान परिवार से हूँ और उन दिनों किसानों की स्थिति कैसी थी यह किसी से छिपी नहीं है। मेरा भी बचपन अल्प संसाधनों के मध्य व्यतीत हुआ है। उन दिनों हमारे गाँव में सिर्फ प्राथमिक शाला ही थी और मिडिल स्कूल गाँव से पाँच किलोमीटर दूर और हाईस्कूल पंद्रह किलोमीटर दूर था। ऐसे में आठवीं तक पढ़ाई कर लेना भी बड़ी बात होती थी। चूंकि मैं पढ़ाई में ठीक था और कक्षा पांचवीं के बोर्ड परीक्षा में अपने पूरे कक्षा में एक मात्र मैं उत्तीर्ण हुआ था और वो भी इकहत्तर प्रतिशत से। अतः मुझे मेरी माँ ने आगे पढ़ाने का निश्चय किया और उन्हीं के प्रयासों से मैं अपनी शिक्षा पूरी कर पाया और शिक्षक बन सका। किशोरावस्था से ही मुझे पढ़ने का बेहद शौक था। मेरे पड़ोस में एक भैया रहते थे जिनके पास ढेरों उपन्यास थे। आप यकीन नहीं करेंगे, मैंने दसवीं कक्षा के आते-आते तक उनसे मांग कर पचासों उपन्यास पढ़ डाले थे। मैं वेद प्रकाश शर्मा, सुरेंद्र मोहन पाठक, केशव पंडित, जेम्स हेडली चेइज जैसे उपन्यासकारों के उपन्यास पढ़ता था और आश्चर्य इससे मेरे स्कूल की पढ़ाई का कोई नुकसान नहीं होता था। पढ़ने का जुनून उन दिनों ऐसा था कि मैं रास्ते में पड़े न्यूज पेपर के टुकड़े को भी उठाकर पढ़ता था। महाविद्यालय की पूरी पढ़ाई मैने स्वाध्यायी के रूप में किया है। क्योंकि 12वीं पास होते ही मैं एक प्राइवेट स्कूल में पढ़ाने लगा था। वहां 5 वर्ष पढ़ाने के बाद मुझे सरकारी नौकरी लग गई। तब तक मैं हिंदी में एम ए कर चुका था। शिक्षण-जीवन में प्रवेश करने के बाद विद्यार्थियों की जिज्ञासा, उनके चेहरे की चमक और उनकी छोटी-छोटी सफलताओं में अपना योगदान देखना मेरे लिए सबसे बड़ा पुरस्कार बना। मेरे पढ़ाए कई बच्चे आज विभिन्न सरकारी नौकरियों में हैं। तो जब मेरा कोई विद्यार्थी अपने लक्ष्य को प्राप्त करता है, अपना कैरियर बना लेता है तो वह क्षण मेरे लिए स्मरणीय और प्रेरणादायी बन जाता है। इस तरह, बचपन के संघर्ष से लेकर विद्यालय के मंच तक की यह यात्रा हर छोटे-बड़े अनुभव से बनी है, जो आज भी मुझे सीखने, सिखाने और आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करता है।
☆√ प्रश्न 2. शाम जी, आप ऊर्जाधानी कहे जाने वाले नगर कोरबा की धरती से हैं। हम आपसे आपके नगर को आपके ही शब्दों में जानना चाहते हैं।
उत्तर:-छत्तीसगढ़ के उत्तर–पूर्वी अंचल में स्थित कोरबा ज़िला राज्य ही नहीं, बल्कि पूरे देश में “ऊर्जाधानी” के नाम से प्रसिद्ध है। यह नाम इस क्षेत्र की अपार कोयला संपदा, विशाल थर्मल पावर प्लांट्स और औद्योगिक प्रतिष्ठानों की वजह से पड़ा।हमारा ज़िला २५ मई १९९८ को बिलासपुर से अलग होकर नए जिले के रूप में अस्तित्व में आया। हसदेव नदी के तट पर बसे इस क्षेत्र का अधिकांश भाग वनाच्छादित और खनिज संपन्न है। यहाँ की धरती में उच्च गुणवत्ता वाला कोयला, बॉक्साइट और अन्य खनिज प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। हमारा जिला देश के सबसे बड़े थर्मल पावर हब के रूप में जाना जाता है। जिसमें मुख्य रूप से एनटीपीसी कोरबा सुपर थर्मल पावर स्टेशन जो कि भारत के सबसे बड़े तापविद्युत संयंत्रों में से एक है। दक्षिण पूर्वी कोलफील्ड्स लिमिटेड (SECL) जो कि भारत की सबसे बड़ी कोयला उत्पादक कंपनी है। बालको (BALCO) जो कि भारत के प्रसिद्ध ऐल्युमिनियम कंपनी में शुमार है। इसके अलावा यहाँ और कई पावर प्लांट्स लगे हैं जो देश की ऊर्जा आवश्यकताओं की निरंतर पूर्ति कर रहे हैं। बात करें यहाँ की प्राकृतिक सौंदर्य और पर्यटन की तो इस के लिए यहाँ सतरेंगा (मिनी गोवा के नाम से प्रसिद्ध) जलभराव क्षेत्र, मिनीमाता बांगो डैम, देवपहरी जलप्रपात (हरियाली के बीच बहते सुंदर झरने) लेमरू हाथी रिज़र्व ( हाथियों के संरक्षण का महत्वपूर्ण क्षेत्र) आदि है। यहाँ की नदियाँ, जंगल और झरने औद्योगिक गतिविधियों के बीच प्रकृति की एक अलग झलक प्रस्तुत करते हैं। कोरबा आदिवासी बहुल क्षेत्र है। यहाँ की लोकसंस्कृति, नृत्य-गीत, पर्व-त्योहार और मेलों में छत्तीसगढ़ की परंपराएँ झलकती हैं। औद्योगिकीकरण के बावजूद इस क्षेत्र ने अपनी सांस्कृतिक पहचान को बनाए रखा है। ऊर्जाधानी कोरबा न केवल छत्तीसगढ़ की औद्योगिक रीढ़ है, बल्कि यहाँ की समृद्ध खनिज संपदा, विशाल विद्युत उत्पादन क्षमता, प्राकृतिक सुंदरता और सांस्कृतिक विविधता इसे विशिष्ट बनाती है। यह ज़िला विकास और प्रकृति के संतुलन का एक जीवंत उदाहरण है और आने वाले समय में भी देश के ऊर्जा क्षेत्र में अपनी अहम भूमिका निभाता रहेगा।
☆ प्रश्न 3. आपने भारत भर में कई स्थानों की यात्रा की है। इन यात्राओं ने आपके व्यक्तित्व को किस प्रकार उर्जान्वित किया?
उत्तर:- यात्रा…., मैं समझता हूँ कि यात्रा हमारे जीवन का एक आवश्यक अंग है। क्योंकि ये हमारे जीवन को नई ऊर्जा और दृष्टि देती है। जब हम अपने शहर और दिनचर्या से बाहर निकलकर किसी नए स्थान पर जाते हैं, तो न केवल दृश्य बदलते हैं बल्कि हमारी सोच भी विस्तृत होती है। अनजान लोगों से मिलना, नई संस्कृति को समझना, प्रकृति के बीच समय बिताना; ये सब हमें आत्मविश्वास, सहिष्णुता और संवेदनशीलता सिखाते हैं। यात्रा हमारे मन को ताजगी देती है, रचनात्मकता को जगाती है और जीवन की छोटी-छोटी खुशियों के प्रति आभार पैदा करती है। इस तरह हम कह सकते हैं कि यात्रा केवल दूरी तय करने का नाम नहीं, बल्कि खुद को और गहराई से जानने का अवसर है।
☆ प्रश्न 4. आपने अपने लेखन को ”शाम” उपनाम दिया। आप अपनी कलम की धार के साथ इस नाम को किस प्रकार समन्वित करते हैं?
उत्तर:- “शाम” का अर्थ होता है संध्या काल। ये नाम मैंने यूँ ही नहीं चुना, बल्कि इसे एक विशिष्ट संदर्भ में लिया है। मैं समझता हूँ कि दिन की आपाधापी, शोर और उजाले के बाद जब सन्ध्या उतरती है, तो उसमें एक ठहराव, एक सुकून, एक गहराई होती है। वहाँ न तो तेज धूप की तपिश होती है न ही घोर अंधकार। मेरे विचार से मेरी रचनाएं भी उसी शाम जैसी है। वह न तो केवल उजाले की बात करती है करती है, न ही केवल अन्धकार की, बल्कि दोनों के बीच के रंगों को, संवेदनाओं को पकड़ने की कोशिश करती है। मैं मानता हूँ कि मेरी लेखन शैली इसी सन्ध्या-क्षण जैसी है; एक ओर मनन, दूसरी ओर संवेदना। मैं चाहता हूँ कि पाठक मेरे शब्दों में वही ठहराव और वही गहराई पाएँ जो शाम के आकाश में होती है। “शाम” मेरे लिए सिर्फ़ नाम नहीं, बल्कि मेरे लेखन का स्वभाव है; मधुर, विचारशील और आत्मसंवादी। जो अंधेरे और उजाले दोनों को साथ समाहित कर के चले।
☆ प्रश्न 5. शिक्षा-जगत में अध्यापन का दायित्व निभाते हुए, आपको अपने विद्यार्थियों से किस प्रकार का आत्मिक संतोष एवं प्रेरणा प्राप्त होती है?
उत्तर:- यहां मैं आपको बताना चाहूंगा कि युवावस्था से ही मैं शिक्षक ही बनना चाहता था। बचपन से बनना चाहता था, ऐसा इसलिए नहीं कहूंगा कि बचपन में सपने तो पल पल बदलते रहते हैं। तब मन ऐसा होता है कि जिससे प्रभावित हुए, वही बनने की इच्छा हो गई। अब चूंकि मैं शिक्षक बनना चाहता था और शिक्षक ही हूँ तो अपने इस पसंदीदा पेशे के विषय में मै ये कहना चाहूंगा कि मेरे लिए अध्यापन केवल ज्ञान-प्रदाय की प्रक्रिया नहीं, अपितु एक उच्चतर साधना है। जब मैं कक्षा में अपने विद्यार्थियों को गहन रुचि एवं जिज्ञासा के साथ सीखते, प्रश्न करते तथा अपने विचारों को विकसित करते देखता हूँ, तो मुझे गहरा आत्मिक संतोष प्राप्त होता है। यह संतोष इस विश्वास से उत्पन्न होता है कि मैंने उनके अंतःकरण में जिज्ञासा, विचारशीलता और मूल्यबोध की चिंगारी प्रज्वलित की है। विद्यार्थियों की प्रगति, उनका आत्मविश्वास तथा उनके व्यक्तित्व का क्रमिक परिष्कार मेरे लिए सर्वश्रेष्ठ प्रेरणा का स्रोत है। उनकी उपलब्धियाँ मुझे निरंतर यह अनुभव कराती हैं कि शिक्षक और शिष्य दोनों एक-दूसरे के सहयोगी एवं सह-यात्री हैं। उनके प्रश्न, उनके अनुभव और उनके नवीन दृष्टिकोण मुझे स्वयं को भी नित-नवीन सीखने की प्रेरणा देते हैं। इसीलिए, मै कहता हूँ कि अध्यापन मेरे लिए एक पेशा मात्र नहीं, बल्कि एक ऐसा कर्म है जो जीवन को अर्थ, ऊर्जा और आध्यात्मिक तृप्ति प्रदान करता है।
☆ प्रश्न 6. लेखन (कहानी/उपन्यास) और कविता-पाठन की रुचि आपने कब और कैसे आत्मसात की? क्या यह आपके पारिवारिक वातावरण से उपजी या आपके अंतर्मन की सहज पुकार थी?
उत्तर:- मेरे परिवार से कोई भी लेखन के क्षेत्र में नहीं है। मैं ऐसे परिवेश से हूँ जहां सिर्फ मेरे ही नहीं बल्कि मेरे सभी साथियों के भी माँ-बाप अनपढ़ थे। यहाँ तक की मेरी तीन बड़ी बहनें भी अनपढ़ हैं। इसका कारण है कि तब तक हमारे गाँव या उसके आस पास स्कूल ही नहीं था। तो ऐसे में मैं यह नहीं कह सकता कि ये पारिवारिक वातावरण के कारण है। हां मैं यह अवश्य कह सकता हूँ कि ये अंतर्मन की सहज पुकार थी। मैं बचपन से ही बहुत अधिक भावुक हूँ। और कदाचित यही कारण है कि मैं दसवीं कक्षा आते-आते कविताएं लिखने लगा था। हालांकि तब मेरे आस पास ऐसे माहौल थे कि जब मैं किसी को अपनी कविता सुनाता तो किसी को यकीन ही नहीं होता था कि ये मैने लिखा है। धीरे-धीरे मैने अपनी कविता किसी को भी सुनाना बंद कर दिया और उसे अपनी एक डायरी में सहेजता रहा। फिर सोशल मीडिया का दौर आया और मेरे हाथ लगा प्रतिलिपि ऐप। मैने उसमें अपनी कविताओं को प्रकाशित करना प्रारंभ किया। फिर कहानी, फिर धारावाहिक उपन्यास। और इस तरह मैने ढेरों उपन्यास लिख डाले। मैं अपने कविता पाठन की बात करूं तो ये मेरे लिए बिल्कुल ही नया क्षेत्र था, जहाँ मै संयोगवश प्रवेश कर गया। हुआ यूं कि जुलाई २०२३ में मैं अपने गांव को छोड़कर शहर आया, जहां मुझे वहाँ के स्थानीय काव्य समिति से जुड़ने का न्यौता मिला। मैं वहाँ आयोजित काव्य गोष्ठियों में नियमित जाने लगा। फिर जिला स्तरीय काव्य समिति से जुड़ा। और इस तरह मेरा काव्य पाठन का दौर शुरू हुआ। अब स्थिति ऐसी है कि महीने ४_५ काव्य गोष्ठियों में उपस्थित होता ही हूँ।
☆ प्रश्न 7. संगीत-गायन और साहित्य—दोनों ही आत्मा के स्वर हैं। आपके जीवन में इनका परस्पर समन्वय किस प्रकार व्यक्त होता है?
उत्तर:- सच कहा आपने, संगीत-गायन और साहित्य, दोनों ही आत्मा के स्वर हैं। जहाँ साहित्य विचार, शब्द और भाव देते हैं, वहीं संगीत उन भावों को स्वर और लय प्रदान करता है। जब से मैं काव्य गोष्ठियों में कविता पाठन के लिए जाने लगा हूँ तब से मेरे जीवन में संगीत और लय का स्थान बढ़ गया है। पहले मैं जब कविता लिखता था तो सिर्फ उसके भाव और शब्द संयोजन पर ही ध्यान दिया करता था। किंतु अब जब मैं लिखता हूँ, तो लय पर विशेष ध्यान देता हूँ। या यूँ कहूं कि अब जब मैं कोई गीत/कविता लिखता हूँ तो भीतर कोई अनसुना लय बजता रहता है और मेरे शब्द उस लय में बंधते चले जाते हैं। मैं समझता हूँ कि साहित्य और संगीत का यह संगम मुझे गहराई, संवेदनशीलता और सृजनशीलता देता है, और मेरी कविताओं को अधिक अर्थपूर्ण बनाता है।
☆ प्रश्न 8. शाम जी, कहानी “तुम्हारी खुशी” स्त्री मनोभावों का दर्पण है। इस कहानी की पटकथा के प्रेरणास्रोत क्या रहे?
उत्तर:- इस कहानी के प्रेरणास्रोत मेरे आसपास की वे परिचित स्त्रियाँ, मेरे कुछ अच्छे मित्र व सहकर्मी हैं जिनकी बातों में मैने अनकहे दर्द देखे और चुप्पियों में एक गूंज। उनसे मिले अनुभव, उनकी दर्द सह कर भी मुस्कुराने की कला, बहुत कुछ होने पर भी कुछ नहीं हुआ जैसे उनका जीना, उनकी जीवटता, उनके संकल्प जैसी बातों ने मिलकर इस कहानी को लिखने के लिए मुझे विवश किया। “तुम्हारी ख़ुशी” लिखते समय मेरे सामने एक ही बात थी, स्त्री के मन की वह नाज़ुक परतें, जिन्हें समाज अक्सर अनदेखा कर देता है। घर, परिवार, रिश्ते, त्याग और आत्मसम्मान के बीच एक स्त्री किन भावनात्मक उतार-चढ़ावों से गुज़रती है, वही मुझे पाठकों को दिखाना था। “तुम्हारी खुशी” ही नहीं अपनी अन्य स्त्री-विमर्श की रचनाओं जैसे “हमसाया” “छाया” “पीतल का प्रेम” के लिए भी मैने खूब श्रम किया है। इसके लिए मैने स्त्री-स्वर को अभिव्यक्ति देने वाली हिन्दी साहित्य की पुरानी और समकालीन अनेकों किताबों का अध्ययन भी किया था, ताकि अपनी नायिकाओं के प्रति न्याय कर सकूं और उनकी भावों को सही स्वरूप दे सकूं। “तुम्हारी ख़ुशी” जैसी मेरी स्त्री-विमर्श की रचनाएं, वास्तव में उस संवेदना को आवाज़ देने का प्रयास है, जो बहुतों के जीवन में मौजूद है लेकिन शब्द नहीं पाती।
☆ प्रश्न 9. आपके काव्य में श्रृंगार और हृदय में पुस्तक-पाठन की रुचियाँ भी विशेष स्थान रखती हैं। यह सौंदर्य-चेतना और ज्ञान-चेतना का संगम आपके दैनिक जीवन को कैसे परिभाषित करता है?
उत्तर:- मेरी रचनात्मकता के मूल में दो धाराएँ साथ-साथ बहती हैं सौंदर्य-चेतना और ज्ञान-चेतना। सौंदर्य-चेतना का स्रोत वह श्रृंगार और संवेदनशीलता है, जो मुझे जीवन की सूक्ष्म, कोमल और आकर्षक पहलुओं को देखने और महसूस करने की क्षमता देती है। चाहे प्रकृति के रंग हों, मानवीय संबंध हों या भावनाओं के उतार-चढ़ाव, यह दृष्टि उन्हें शब्दों में बदलने की प्रेरणा देती है। दूसरी ओर पुस्तक-पाठन और अध्ययन मेरी ज्ञान-चेतना को पोषित करते हैं। विविध साहित्य, दर्शन, इतिहास और नए विचारों का नियमित अध्ययन मुझे गहराई, संदर्भ और वैचारिक दृढ़ता प्रदान करता है। जब ये दोनों चेतनाएँ मिलती हैं तो मेरे भीतर एक संतुलित, समृद्ध दृष्टिकोण बनता है। मैं किसी घटना या अनुभव को केवल भावनात्मक रूप में नहीं, बल्कि विचारात्मक और सांस्कृतिक संदर्भ में भी देख पाता हूँ। यह संगम मेरे दैनिक जीवन को इस तरह परिभाषित करता है कि हर क्षण मेरे लिए अनुभव + चिंतन का अवसर बन जाता है। नतीजा यह है कि मेरी कविता और गद्य में भावनात्मक कोमलता के साथ वैचारिक ऊँचाई भी आ पाती है, और यह मिश्रण मुझे रचनाकार के रूप में निरंतर नई ऊर्जा देता है।
☆ प्रश्न 10. शब्दों के महासागर से “अक्षांश” जैसा उपन्यास प्रेरणा की किन धाराओं से निकल कर तरंगित हुआ?
उत्तर:- भारतीय संस्कृति और पौराणिक आख्यानों में असंख्य देवताओं, ऋषियों, गंधर्वों, नागों, यक्षों और दैत्यों की गाथाएँ हैं। इन सबमें “असुर” एक ऐसा वर्ग है, जो जितना रहस्यमय है उतना ही विचारोत्तेजक भी। सामान्य धारणा है कि असुर बुराई का पर्याय हैं। परन्तु वास्तव में ऐसा नहीं है। पौराणिक ग्रंथों में उनका चित्रण कहीं अधिक बहुआयामी है। वे महाबली भी हैं, तपस्वी भी; ज्ञानवान भी, दानवीर भी। पुराणों के अनुसार, ऋषि कश्यप की पत्नियों अदिति और दिति से क्रमशः देवताओं और दैत्यों का जन्म हुआ। अदिति के पुत्र आदित्य (इन्द्र, वरुण, मित्र आदि) देवता कहलाए, जबकि दिति के पुत्र दैत्य या असुर। यह वंश-वृत्तांत बताता है कि देव और असुर एक ही मूल से निकले हैं, एक ही कुल के भाई, जिनके मार्ग और प्रवृत्तियाँ अलग हो गईं। पौराणिक ग्रंथों के अध्ययन में आप देखते हैं कि असुरों का चित्रण प्रायः असाधारण शक्ति, असीम तपस्या और मायावी सामर्थ्य से युक्त प्राणियों के रूप में मिलता है। स्पष्ट पता चलता है कि असुरों का चरित्र एकांगी नहीं; वे केवल दुष्ट या क्रूर नहीं हैं, बल्कि शक्ति और ज्ञान के प्रतीक भी हैं। कई स्थानों पर हमें यह भी पढ़ने को मिलता है कि उनके साथ अन्याय हुआ और उसके प्रतिशोध स्वरूप ही उन्होंने संघर्ष किए। इन्हीं बातों से प्रेरित मैंने एक ऐसे असुर दीर्घबाहु की गाथा लिखने की ठानी जो अपने आचार्य सत्यध्वज की पुत्री सुलक्षणा से प्रेम करता है। सुलक्षणा भी उससे अटूट प्रेम करती थी और इसमें दीर्घबाहु का मित्र और सुलक्षणा के भाई तुंगकेतु की सहमति थी। आचार्य सत्यध्वज को यह संबंध मात्र इसलिए स्वीकार्य नहीं क्योंकि दीर्घबाहु असुरकुल का है जबकि वह बल, बुद्धि, ज्ञान में उसके समस्त शिष्यों में सर्वश्रेष्ठ था। वह दीर्घबाहु, सुलक्षणा और उनका साथ देने के अपराध में अपने पुत्र तुंगकेतु, तीनों को घोर अपमानित कर निकाल देता है। तब तीनों, तीन दिशाओं में प्रस्थान करते हैं। सुलक्षणा तपस्या कर के इतनी शक्ति अर्जित करना चाहती है कि वह दीर्घबाहु के अपमान का बदला ले सके। तुंगकेतु तपस्या कर के इतने अस्त्र शस्त्र अर्जित करना चाहता है कि दीर्घबाहु को कोई पराजित न कर सके। और दीर्घबाहु स्वयं को इतनी शक्तिशाली करना चाहता था कि उन दोनों के उद्देश्यों को पूर्ण कर सके।
☆ प्रश्न 11. आप आधुनिक हिन्दी साहित्य को किस दृष्टि से देखते हैं? क्या आपको लगता है कि यह समय साहित्य में नए विमर्शों और प्रयोगों का है?
उत्तर:- आधुनिक हिन्दी साहित्य आज समाज, राजनीति और तकनीक के तीव्र परिवर्तनों के बीच लिखा जा रहा है। यह केवल परंपरागत विषयों तक सीमित नहीं, बल्कि स्त्री-अस्मिता, दलित अनुभव, आदिवासी जीवन, प्रवासी समाज, पर्यावरण और डिजिटल संस्कृति जैसे नए विमर्शों को भी उठा रहा है। यही इसकी सबसे बड़ी ताक़त है। गद्य और कविता दोनों में भाषा, कथन-शैली और शिल्प के स्तर पर निरंतर प्रयोग हो रहे हैं, लघुकथा, माइक्रोफिक्शन, ब्लॉग, इंस्टा-पोएट्री और मंचीय प्रस्तुति जैसे नए रूप सामने आए हैं। सोशल मीडिया और साहित्यिक मंचों ने इसे नए पाठक और श्रोता दिए हैं। यह समय अवसरों से भरा है, पर गहराई और मौलिकता बनाए रखना भी उतनी ही चुनौती है। इसीलिए आधुनिक हिन्दी साहित्य को मैं नए विमर्शों, नई आवाज़ों और शिल्पगत प्रयोगों के उभरते युग के रूप में देखता हूँ।
☆ प्रश्न 12. संस्कृत और हिन्दी—दोनों ही हमारी सांस्कृतिक धरोहर हैं। आप इनके परस्पर संबंध और वर्तमान पीढ़ी के लिए इनके महत्व को कैसे प्रतिपादित करते हैं?
उत्तर:- बिल्कुल सही कहा आप ने, संस्कृत और हिन्दी हमारी सांस्कृतिक धरोहर की दो सशक्त कड़ियाँ हैं। संस्कृत को देव वाणी भी कहा जाता है और माना जाता है कि आदि काल में हमारे भारत वर्ष के जन इसी भाषा में वार्तालाप करते थे। इस तरह, संस्कृत भारतीय ज्ञान, दर्शन और साहित्य की आदिम भाषा है, जबकि हिन्दी उसी परंपरा से विकसित आधुनिक और जीवंत भाषा है। हिन्दी के शब्द, व्याकरण और अभिव्यक्ति संस्कृत से गहराई से प्रभावित हैं, इसीलिए दोनों में स्रोत-संतति का रिश्ता है। संस्कृत के महाकाव्य, उपनिषद, पुराण और शास्त्र हिन्दी साहित्य को भाव, भाषा और दृष्टि प्रदान करते हैं, जबकि हिन्दी इस विरासत को वर्तमान समाज तक सहजता से पहुँचाती है। वर्तमान पीढ़ी के लिए इन दोनों भाषाओं का अध्ययन केवल भाषिक दक्षता ही नहीं, बल्कि अपनी सांस्कृतिक जड़ों, मूल्यों और परंपराओं से जुड़ने का अवसर देता है। संस्कृत और हिन्दी मिलकर नई पीढ़ी में परंपरा और आधुनिकता का संतुलन और आत्मगौरव दोनों पैदा कर सकती हैं।
☆ प्रश्न 13. आज का साहित्य सोशल मीडिया के तीव्र प्रवाह से प्रभावित हो रहा है। आपके विचार में यह प्रवृत्ति साहित्य के लिए वरदान है या चुनौती?
उत्तर:- आज का साहित्य सोशल मीडिया के तीव्र प्रवाह से न केवल प्रभावित हो रहा है, बल्कि उसकी दिशा और प्रकृति भी बदल रही है। यह प्रवृत्ति साहित्य के लिए एक साथ वरदान भी है और चुनौती भी। वरदान इसलिए कि सोशल मीडिया ने साहित्य को अभूतपूर्व मंच और सुलभता दी है। आज कोई भी लेखक चाहे वह बड़े शहर से हो या छोटे कस्बे से बिना किसी प्रकाशक या संपादक की बाधा के अपनी रचनाएँ सीधे पाठकों तक पहुँचा सकता है। कविताएँ, कहानियाँ, विचार और निबंध तुरंत हजारों-लाखों लोगों तक पहुँच जाते हैं। इससे नए लेखकों, भाषाओं और शैलियों को पहचान मिलती है, और लेखक-पाठक के बीच सीधा संवाद और प्रतिक्रिया का वातावरण बनता है, जो पहले संभव नहीं था। लेकिन इसके साथ चुनौतियाँ भी कम नहीं हैं। त्वरित उपभोग और ‘स्क्रॉल कल्चर’ ने गहन पढ़ने, सोचने और विश्लेषण करने की आदत को कमजोर किया है। लोकप्रियता और ‘लाइक्स’ के दबाव में लेखक कभी-कभी सतही, तात्कालिक या चटपटी सामग्री लिखने को मजबूर हो जाते हैं। कॉपी-पेस्ट और मौलिकता की समस्या भी गंभीर है। इसलिए, सोशल मीडिया का प्रवाह साहित्य के लिए अवसर भी है और परीक्षा भी। जो लेखक इस मंच पर मौलिकता, गहराई और संवेदनशीलता बनाए रखेंगे, वही अपने समय और समाज के लिए टिकाऊ और सार्थक साहित्य रच पाएँगे। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि सोशल मीडिया के इस दौर में साहित्य के लिए संभावनाएँ और चुनौतियाँ दोनों साथ-साथ हैं। यह मंच लेखन को लोकतांत्रिक बनाता है, नए लेखकों और विचारों को जगह देता है, लेकिन साथ ही सतहीपन और तात्कालिक लोकप्रियता के आकर्षण से बचने की जिम्मेदारी भी लेखक पर डालता है। इसलिए आज के लेखक के लिए सबसे बड़ा कार्य है, इस तेज़ प्रवाह में भी मौलिकता, गहराई और संवेदनशीलता को बचाए रखना। यदि हम सोशल मीडिया को केवल प्रचार का माध्यम न मानकर विचार और संवाद की सच्ची भूमि बनाएं, तो यह साहित्य के लिए एक सशक्त वरदान साबित हो सकता है।
☆ प्रश्न 14. आपकी लेखनी साहित्य के विभिन्न आयामों को गढ़ने में सक्षम है। “एरो – सीक्रेट इंटेलिजेंस यूनिट” जैसा उपन्यास लिखने के पीछे क्या उद्देश्य रहा? आपने इसके दो सीजन लिखे हैं, कोई विशेष कारण?
उत्तर:- मुझे जासूसी उपन्यास पढ़ना बहुत अच्छा लगता है, खासकर ऐसे जिसमें खुफिया एजेंसी तमाम प्रकार के खतरों से लड़ते हुए अपने मिशन को अंजाम देते हैं। इसलिए मेरे मन में इच्छा थी कि मैं भी ऐसा ही कुछ रोमांचक लिखूं। मैने एरो के दो सीजन लिखे हैं। दोनों ही सीजन प्रतिलिप ऐप पर उपलब्ध है। इसमें बताया गया है कि भारत में आईबी और रॉ के अलावा एक और सीक्रेट इंटेलिजेंस यूनिट है जिसका नाम है एरो। एरो में जासूसों की कई टीम हैं जिनमें से पहला सीजन वाइपर टीम के पोखरा (नेपाल का एक शहर) में सर्जिकल स्ट्राइक की कहानी है। वहीं दूसरा सीजन मैक्सिको के ड्रग कार्टेल से इनके भिड़ने और उसे बर्बाद करने की कहानी है।दोनों ही सीजन काफी रोमांचक है। आप इसे एक बार पढ़ना शुरू करते हैं तो अंत तक पढ़े बिना नहीं रह सकते।
☆ प्रश्न 15. सामाजिक चेतना और साहित्य का गहरा संबंध है। आपके मत में वर्तमान समय के लेखक की समाज के प्रति सबसे बड़ी जिम्मेदारी क्या होनी चाहिए?
उत्तर:- साहित्य और समाज का रिश्ता हमेशा से एक-दूसरे को दिशा देने वाला रहा है। जिस तरह समाज के अनुभव, संघर्ष और बदलाव साहित्य में उतरते हैं, वैसे ही साहित्य भी समाज की सोच, संवेदना और दिशा को प्रभावित करता है। मेरे विचार से, वर्तमान समय के लेखक की समाज के प्रति जो जिम्मेदारियां हैं उन्हें मै निम्न कुछ बिंदुओं के रूप में रखना चाहूंगा, ताकि उन्हें अधिक प्रभावी ढंग से स्पष्ट कर सकूं:-
१.सत्य को साहसपूर्वक उजागर करना
लेखक का पहला धर्म सत्य से समझौता न करना है। भले ही माहौल कितना भी चुनौतीपूर्ण हो, लेखक को समाज की वास्तविक समस्याओं, अन्याय, भेदभाव, शोषण, भ्रष्टाचार और नैतिक पतन जैसी सच्चाइयों को ईमानदारी से प्रस्तुत करना चाहिए।
२. संवेदनशीलता और मानवीय मूल्यों को बचाए रखना
आज की उपभोक्तावादी और डिजिटल दौड़ में मानवीय संवेदनाएँ कमजोर पड़ रही हैं। लेखक का दायित्व है कि वह अपने लेखन के माध्यम से करुणा, सहानुभूति, पारस्परिक सम्मान और न्याय जैसे मूल्यों को पुनर्जीवित करे।
३. सकारात्मक बदलाव की प्रेरणा देना
सिर्फ समस्याएँ बताना ही नहीं, बल्कि रास्ते और संभावनाएँ भी दिखाना। लेखक अपने पात्रों, कथाओं और विचारों के जरिए पाठकों में जागरूकता और परिवर्तन की इच्छा जगा सकता है।
५. लोकतांत्रिक और बहुलतावादी चेतना को पोषित करना
समाज में मतभेद, विविधता और विचारों के टकराव को समझना व उन्हें सृजनात्मक ढंग से प्रस्तुत करना लेखक की जिम्मेदारी है। इससे समाज में संवाद और सहिष्णुता बढ़ती है।
६. भाषा और संस्कृति को समृद्ध करना तात्पर्य, लेखक अपने समय की भाषा, लोकजीवन, परंपरा और संस्कृति को संजो कर रखता है। वह नई पीढ़ी को इनसे जोड़ने का माध्यम बन सकता है।
७. नैतिक दृष्टि बनाए रखना अर्थात, लेखक केवल मनोरंजन या लोकप्रियता के लिए नहीं, बल्कि समाज की अंतरात्मा के रूप में लिखे। लेखन को जिम्मेदार, विचारशील और नैतिक बनाना ही सबसे बड़ी जिम्मेदारी है।
सारांश में मैं कहूंगा कि वर्तमान समय का लेखक एक संवेदनशील दर्पण और दिशा-सूचक दोनों है। उसे न सिर्फ समाज की वास्तविकताओं को उजागर करना चाहिए, बल्कि मानवीयता, न्याय और बदलाव की चेतना जगाने वाला साहित्य रचना चाहिए। यही उसकी सबसे बड़ी जिम्मेदारी है।
☆ प्रश्न 16. शाम जी, आप स्वयं कलम के एक सशक्त हस्ताक्षर हैं। ऐसे में विभिन्न साहित्यिक हस्ताक्षरों का साक्षात्कार करते समय आपके क्या अनुभव रहे?
उत्तर:- मेरे विचार से, जब कोई लेखक किसी दूसरे लेखक का साक्षात्कार करता है, तो उसकी जिम्मेदारी एक एंकर के मुकाबले कुछ अधिक हो जाती है। मैं मानता हूँ कि ऐसे में वह केवल प्रश्न–उत्तर का औपचारिक मंच नहीं रह जाता, बल्कि दो रचनात्मक आत्माओं के बीच आत्मीय संवाद बन जाता है। चूंकि दोनों ही लेखन की कठिनाइयों, संघर्षों और प्रेरणाओं से परिचित होते हैं, इसलिए उनके प्रश्न सतही नहीं बल्कि गहराई तक उतरते हैं। इस कारण बातचीत में सहजता, सहानुभूति और पारदर्शिता स्वाभाविक रूप से आ जाती है। ऐसी भेंटवार्ता केवल जानकारी का आदान–प्रदान नहीं होती, बल्कि विचारों, शैलियों और अनुभवों का साझा उत्सव बन जाती है। एक लेखक दूसरे लेखक से बातचीत कर न सिर्फ उसकी रचनात्मक यात्रा को समझता है, बल्कि अपने भीतर भी नई दृष्टि और प्रेरणा पाता है। इस प्रकार, हम कह सकते हैं कि यह साक्षात्कार साहित्यिक संसार के दो किनारों को जोड़ने वाला पुल बनकर, शब्दों और संवेदनाओं की नई दिशा दिखाता है। रही बात उन दिनों के मेरे अनुभव का तो मैं कहूंगा कि यह मिला जुला या कहूं कि काफी-खट्टा मीठा रहा। कुछ लेखकों ने मुझे साक्षात्कार के लिए अपने पीछे काफी भगाया, प्रतीक्षा कराया और मेरे साथ बहुत ही गैर आत्मीयतापूर्ण व्यवहार किया। जिससे एक दो लेखकों के साथ मतभेद भी हुए, एक दो का मैने साक्षात्कार स्थगित भी किया। वहीं कुछ ऐसे भी थे जो तब मेरे ऐसे मित्र बने कि आज तक उनसे मेरे आत्मीय संबंध हैं और कदाचित ये जीवन भर रहेंगे। खैर, इस विषय में मै यही कहूंगा कि लेखक भी मनुष्य ही होते हैं। और मनुष्य अच्छे भी होते हैं और औसत दर्जे के भी।
☆ प्रश्न 17. कल्पकथा साहित्य संस्था जैसे मंचों की भूमिका के संदर्भ में—क्या आप मानते हैं कि साहित्य की चेतना अब पुनः जाग रही है?
उत्तर:- कल्पकथा साहित्य संस्था जैसे मंच आज के समय में साहित्य को नई ऊर्जा दे रहे हैं। पहले साहित्य की चर्चा केवल पत्रिकाओं और सभाओं तक सीमित थी, परंतु अब ऐसे मंच लेखकों, पाठकों और समीक्षकों को एक ही छत के नीचे लाकर साझा संवाद का अवसर दे रहे हैं। नए रचनाकार बिना झिझक अपनी रचनाएँ प्रस्तुत कर रहे हैं और पाठक सीधे प्रतिक्रिया दे रहे हैं। यह प्रक्रिया साहित्य को लोकतांत्रिक बनाते हुए उसकी गहराई और विविधता को भी बढ़ा रही है। इस तरह, इन मंचों के कारण पढ़ना–लिखना फिर से सांस्कृतिक चेतना का हिस्सा बन रहा है। निस्संदेह, यह प्रवृत्ति बताती है कि साहित्य की चेतना पुनः जाग रही है।
☆ प्रश्न 19. आप अपने समकालीन लेखकों, दर्शकों, श्रोताओं, पाठकों, को क्या संदेश देना चाहेंगे?
उत्तर:- लेखकों के लिए मै कहना चाहूंगा कि आप अपनी कलम को केवल लोकप्रियता या तात्कालिक प्रशंसा के लिए नहीं, बल्कि समाज और मनुष्य के गहरे सत्य को उजागर करने के लिए चलाइए। संवेदनशीलता, ईमानदारी और नैतिकता आपके लेखन की आत्मा होनी चाहिए। विविध दृष्टियों को सम्मान दीजिए और नई शैलियों, विषयों और प्रयोगों से डरिए मत। वहीं पाठकों को मेरा संदेश है कि वो साहित्य, कला और विचारों को केवल मनोरंजन की वस्तु न समझें। पढ़ते, सुनते या देखते समय प्रश्न पूछें, सोचें, संवाद करें। अच्छी रचना को खोजिए, उसे समय दीजिए, और लेखक को रचनात्मक ईमानदारी के लिए प्रोत्साहित कीजिए। तात्पर्य, हम सब लेखक हों या पाठक, मिलकर संवेदनशील, जिज्ञासु और न्यायप्रिय समाज का निर्माण कर सकते हैं। शब्दों और विचारों को केवल उपभोग नहीं, बल्कि बदलाव का माध्यम बनाइए। यही मेरा संदेश है।
कल्प भेंटवार्ता कार्यक्रम के वर्तमान अंक को देखने के लिए लिंक पर जाएं।
https://www.youtube.com/live/bcDs7g4tlv8?si=xb-kVhfWJ9-QNiKQ
“कल्प भेंटवार्ता प्रबंधन”
One Reply to ““कल्प भेंटवार्ता” – श्री राधेश्याम साहू “शाम” जी के साथ”
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पवनेश
राधे राधे,
आदरणीय राधे श्याम साहू शाम जी के साथ भेंटवार्ता कार्यक्रम अत्यंत आनंददायक रहा। 🙏🌹🙏