
“कल्प भेंटवार्ता – श्री गोपाल कृष्ण बागी जी”
- कल्प भेंटवार्ता
- 26/09/2025
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!! “व्यक्तित्व परिचय” !!
🌺 “कल्प भेंटवार्ता” – श्री गोपाल कृष्ण बागी जी के साथ 🌺
नाम :- श्री गोपाल कृष्ण बागी जी, हल्द्वानी )उत्तराखण्ड)
माता/पिता का नाम :- श्रीमति सुलोचना बागी/श्री बलदेव कृष्ण बागी
जन्म स्थान एवं जन्म तिथि :- श्री मुक्त साहिब पंजाब/11.11.1964
पति/पत्नी का नाम :- श्रीमति उमा बागी
बच्चों के नाम :- साहिल बागी /कृतिका बागी
शिक्षा :- एम.ए (अंग्रेजी ) बी.एड
व्यवसाय :- अध्यापन
वर्तमान निवास :- हल्द्वानी
आपकी मेल आई डी :- yogeshverom93@gmail.com
आपकी कृतियाँ :- योगांजलि1-2, अवतारी आयु -द एर ऑफ इनसन्स, योग-अ स्पिरिच्वल जर्नी बिऑन्ड फिज़िकल, प्रणाजली
आपकी विशिष्ट कृतियाँ :-सौन्दर्य लहरी
आपकी प्रकाशित कृतियाँ :- योगांजलि1-2, अवतारी आयु -द एर ऑफ इनसन्स, योग-अ स्पिरिच्वल जर्नी बिऑन्ड फिज़िकल
पुरस्कार एवं विशिष्ट स्थान :-सीबीएसई द्वारा अफिलीऐशन कमेटी मेम्बर तीन बार, कटेट अब्ज़र्वर , बेस्ट ऐड्मिनिस्ट्रेटर इन 2004 ऐपेक्स इंटरनेशनल इंस्टिट्यूट
!! “मेरी पसंद” !!
उत्सव :- दीवाली होली लोहड़ी गुरु पूर्णिमा बसंत पंचमी
भोजन :- शाकाहारी सब्जी पालक पनीर सरसों साग मक्का रोटी
रंग :- हल्के नीला हरा पीला ग्रे
परिधान :- भारतीय, विदेशी
स्थान एवं तीर्थ स्थान :- अमृतसर, नैनीताल ऋषिकेश, वृंदावन
लेखक/लेखिका :- मुंशी प्रेमचंद, तुलसीदास,
कवि/कवयित्री :- मीरा , ललदवद, वॉर्डसवॉरथ, रोबर्फरस्त
उपन्यास/कहानी/पुस्तक :- अक्षर यात्रा गुलाब कोठारीजी
कविता/गीत/काव्य खंड :- सौन्दर्य लहरी
खेल :- क्रिकेट शतरंज टेबल टेनिस वॉलेबाल
फिल्में/धारावाहिक (यदि देखते हैं तो) :- महाभारत, रामायण केजीएफ, पुष्प 1,2
आपकी लिखी हुई आपकी सबसे प्रिय कृति :- सौन्दर्य लहरी गान
!! “कल्पकथा के प्रश्न” !!
प्रश्न १. आदरणीय बागी जी, आपके व्यक्तित्व का प्रथम परिचय ‘योगानुरागी साहित्यकार’ के रूप में मिलता है। कृपया बताइए कि आपके साहित्यिक लेखन की प्रेरणा-धारा कहाँ से फूटी और आपके रचना कर्म का मूसलाधार क्या रहा?
उत्तर: मेरे पिता अपनी साधन के अनुभव एक डायरी में लिखते थे। मैंने उन्हें बहुत बार पढ़ा । युवा अवस्था से ही अपने खटे मीठे अनुभव लिखता और फाड़ देता था । फिर जब मैंने अद्यापन कार्य आरंभ किया तो बचों से डायरी लिखवाते थे तो मुजे लगे मुजे अपने अनुभव फाड़ने नहीं चाहिए बस इसी तरह बेटी ने एक अंग्रेजी की कविता मदर पर लिखवाई वोह इतनी अछि लिखी गई की उसी रात मैंने 9-10 कविताएं लिखी इसे आप प्रेरणा का मूलाधार कह सकते हैं ।
प्रश्न २. बागी जी, आप कुमायूं का प्रवेश प्राचीन हल्दू (कदंब) की घाटी, महाभारत वाटिका के लिए जगत प्रसिद्ध हल्द्वानी नगर से हैं। हम आपसे आपके नगर को आपके ही शब्दों में जानना चाहते हैं।
उत्तर: मैं कुमायूं की प्रवेश-घाटी, हल्दू (कदंब) की प्राचीन घाटी और महाभारत वाटिका के लिए प्रसिद्ध हल्द्वानी नगर से हूँ। मेरा नगर केवल भौगोलिक दृष्टि से सुंदर नहीं है, बल्कि सांस्कृतिक और ऐतिहासिक दृष्टि से भी समृद्ध है। यहाँ की घाटियाँ, नदी-तट और प्राचीन स्थल हमारी परंपरा, इतिहास और लोककथाओं का जीवंत चित्र प्रस्तुत करते हैं। हल्द्वानी न केवल व्यापार और शिक्षा का केंद्र है, बल्कि यह आध्यात्मिकता, प्राकृतिक सौंदर्य और सांस्कृतिक चेतना का संगम भी है। मेरे लिए यह नगर घर ही नहीं, बल्कि प्रेरणा और आध्यात्मिक अनुभवों का स्रोत भी है।
प्रश्न ३. आदरणीय, हम आपसे आपके बचपन की नादानी का वह प्रसंग जानना चाहते हैं जो याद करके आप आज भी मुस्कुरा उठते हैं?
उत्तर: पिता जी गाँव से शुद्ध मधु मँगवाते थे खाता मैँ था पिटाई बड़े भाईयो की होती थी में करीब 3-4 वर्ष का था तब उस समय का किस्सा आज भी याद आता है तो मुस्कुराता हूँ।
प्रश्न ४. आप पिछले इक्कीस वर्षों से शिक्षा-जगत में प्राचार्य पद पर रहते हुए सैकड़ों अध्यापकों और हज़ारों विद्यार्थियों को दिशा प्रदान कर चुके हैं। शिक्षा और साहित्य—इन दोनों की समरस साधना आप किस प्रकार संभव कर पाते हैं?
उत्तर: मेरे कोई मित्र नहीं बस यही साधना रही। विद्यालय से घर और बस पूजा पाठ अद्यान और लेखन आज तक यही है। शिक्षा और साहित्य मेरे लिए अलग नहीं, बल्कि एक ही समरस साधना हैं। शिक्षा के माध्यम से मैं विद्यार्थियों और अध्यापकों को ज्ञान, अनुशासन और जीवन मूल्यों की दिशा देता हूँ, वहीं साहित्य उनकी संवेदनाओं, कल्पना और आत्म चेतना को जागृत करता है। दोनों का संयोजन—शिक्षा में अनुशासन और साहित्य में भावनात्मक तथा नैतिक विकास—मुझे समाज और विद्यार्थियों के सर्वांगीण उत्थान की दिशा में मार्गदर्शन करने में सक्षम बनाता है।
प्रश्न ५. आपकी रचनाएँ योगांजलि, योगा बियोंड फिजिकल, एवं अवतारी आयु जैसे अद्भुत ग्रंथों में मूर्त रूप ले चुकी हैं। इन कृतियों का मूल संदेश पाठकों तक किस रूप में पहुँचाना चाहते हैं?
उत्तर: मेरी रचनाएँ—‘योगांजलि’, ‘योगा बियोंड फिजिकल’ और ‘अवतारी आयु’—पाठकों तक मुख्य रूप से योग और आध्यात्मिक जीवन के गहरे संदेश पहुँचाने का प्रयास हैं। मैं चाहता हूँ कि पाठक केवल शारीरिक अभ्यास तक सीमित न रहें, बल्कि योग के मानसिक, भावनात्मक और आध्यात्मिक आयाम को समझें। मेरी रचनाओं का उद्देश्य जीवन में संतुलन, आंतरिक शांति, सकारात्मक सोच और दिव्यता की अनुभूति को जागृत करना है।
प्रश्न ६. आप तीन भाषाओं—हिन्दी, अंग्रेज़ी और पंजाबी—में रचना कर्म कर रहे हैं। बहुभाषी लेखन के इस अनुभव से आपके भीतर किस प्रकार की सृजनात्मक चेतना का विस्तार हुआ है?
उत्तर: सच में प्रवेश जी बहुत ही आनंद आता है यदि कभी लगता है की कुछ उदासीनता आ रही है तो दूसरी भाषा में कविता या उसी कहानी को लिखकर फ्रेश हो जाता हूँ। तीन भाषाओं में लेखन से मेरी सृजनात्मक चेतना विस्तृत हुई है। यह मुझे विविध दृष्टिकोण, भावनाओं की गहराई और अंतर-सांस्कृतिक संवाद स्थापित करने की शक्ति देता है।
प्रश्न ७. आप वर्तमान में आदि शंकराचार्य कृत सौन्दर्य लहरी को कविताबद्ध करने में रत हैं। कृपया इस अद्वितीय प्रयास की कठिनाइयों और सौंदर्य-रसिक उपलब्धियों का परिचय दीजिए।
उत्तर : साधन पाठ बहुत ही अधभुत है। मैँ असल में अपने गुरु महाराज पर लिखना चाहता था ।। यह शायद 2023 की बात है जब मुजे इसे लिखने के लिए कहा गया। उनकी लिखी किताब मैने अपना रैक से उठाई पर उसकी जगह आदि शंकर चर्या कृत सौन्दर्य लहरी हाथ मीन आ गई । आप विश्वास नहीं करेंगे की यह ग्रंथ गूढ संस्कृत में है और इसके 51 श्लोक को मैंने उसे रात करीब 2-3 बजे तक लिख लिया था।। उसके बाद 2-3 बार् एडिट हुई है। सौन्दर्य लहरी’ को कविताबद्ध करना चुनौतीपूर्ण है, क्योंकि इसकी दार्शनिक गहराई को सरल और कवितात्मक रूप में प्रस्तुत करना कठिन है। इसके सौंदर्य-रसिक लाभ से पाठकों को गहन आध्यात्मिक और सौंदर्य अनुभव मिलता है।
प्रश्न ८. आपने अपने माता-पिता के योगमय जीवन और अपनी जन्मकथा के प्रसंगों का उल्लेख किया। क्या आपको लगता है कि गर्भावस्था में मिले योग-संस्कार आज भी आपके साहित्य और जीवन की धड़कन बने हुए हैं?
उत्तर: निश्चय ही, माता-पिता द्वारा दिए गए योग-संस्कार और मेरी जन्मकथा के अनुभव मेरे जीवन और साहित्य की धड़कन बने हुए हैं। गर्भावस्था में प्राप्त ये संस्कार न केवल मेरे आध्यात्मिक दृष्टिकोण को गहन बनाते हैं, बल्कि मेरी रचनाओं में योग, दिव्यता और जीवन के उच्च मूल्यों की स्थायी प्रेरणा प्रदान करते हैं। यही अनुभव मुझे पाठकों तक सृजनात्मक और आध्यात्मिक संदेश पहुँचाने की शक्ति देते हैं।
प्रश्न ९. प्रकृति-सौंदर्य और अध्यात्म आपके लेखन का केन्द्रीय विषय है। आज के यांत्रिक युग में इन दोनों को साधने का क्या व्यावहारिक महत्व है, विशेषकर विद्यार्थियों और युवा पीढ़ी के लिए?
उत्तर: यह प्रश्न सर्वोतम है अभी तक का कारण हमारा जीवन जानवरों की तरह जीने के लिए नहीं हुआ है आज के विद्यार्थी और युवा हमारे भविष्य के मजबूत स्तंभ हैं इन्हें प्रकृति-सौंदर्य और अध्यात्म का ज्ञान होना ही चाहिए । आज के यांत्रिक युग में प्रकृति-सौंदर्य और अध्यात्म का साधन विशेष रूप से आवश्यक है। यह विद्यार्थियों और युवा पीढ़ी को मानसिक संतुलन, भावनात्मक स्थिरता और रचनात्मकता प्रदान करता है। जब युवा प्राकृतिक सौंदर्य और आध्यात्मिक अभ्यास से जुड़ते हैं, तो उनकी सोच व्यापक, संवेदनशील और जीवन मूल्यों के प्रति जागरूक बनती है। यही कारण है कि मैं अपने लेखन में इन्हें केन्द्रीय विषय बनाता हूँ, ताकि पाठक और विद्यार्थी जीवन में आंतरिक शांति और सृजनात्मक ऊर्जा प्राप्त कर सकें।
प्रश्न १०. हिन्दी साहित्य का इतिहास चार प्रमुख कालखंडों—आदिकाल, भक्ति काल, रीतिकाल और आधुनिक काल—में विभक्त माना जाता है। आपके दृष्टिकोण से इन कालखंडों की सबसे प्रखर विशेषता कौन-सी है जो आज भी हमारे साहित्य को दिशा देती है?
उत्तर : हिंदी साहित्य के चारों कालखंडों की अपनी अलग देन है—आदिकाल ने वीरता दी, भक्ति काल ने प्रेम और करुणा दी, रीति काल ने सौंदर्य बोध दिया और आधुनिक काल ने यथार्थ वाद और प्रगतिशील दृष्टि दी। आज की दृष्टि से भक्ति काल की मानवीय करुणा और आधुनिक काल का यथार्थ वाद सबसे प्रखर विशेषताएँ हैं, जो आज भी हमारे साहित्य और समाज को दिशा दे रही हैं।
प्रश्न ११. भक्ति आंदोलन ने हिन्दी साहित्य को भावात्मक ऊँचाइयाँ दीं। वर्तमान समय में भक्ति-साहित्य की पुनर्रचना किस रूप में सम्भव और आवश्यक है?
उत्तर :भक्ति आंदोलन ने हिंदी साहित्य को भावात्मक ऊँचाइयाँ दीं और जनमानस को प्रेम, करुणा और समानता का संदेश दिया। आज के समय में इसकी पुनर्रचना मानवता, सामाजिक समरसता और आंतरिक शांति के संदेश के रूप में आवश्यक है। डिजिटल युग में भक्ति-साहित्य को केवल धार्मिक नहीं, बल्कि मानव मूल्यों और आध्यात्मिकता की सार्वभौमिक धारा के रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है। इस रूप में भक्ति-साहित्य युवाओं को दिशा और समाज को एकता प्रदान कर सकता है। आपको बता दूँ श्री गुरुनानक , कबीर, मीरा , जायसी लाल द्वाद इन्हे आप आज भी देख सकते हैं।
प्रश्न १२. आधुनिक साहित्य ने यथार्थवाद, प्रगतिवाद और प्रयोगवाद जैसी धाराओं को जन्म दिया। इन प्रवृत्तियों में से कौन-सी दिशा आज के समाज और साहित्य को सबसे अधिक उर्वरता प्रदान कर रही है?
उत्तर : आज के समाज और साहित्य को सबसे अधिक उर्वरता यथार्थवाद से मिल रही है, क्योंकि यह हमें जीवन की सच्चाइयों और सामाजिक समस्याओं से जोड़ता है। प्रगति वाद और प्रयोग वाद भी महत्वपूर्ण हैं, लेकिन वर्तमान दौर की सबसे प्रखर दिशा यथार्थ वाद ही है।
प्रश्न १३. मुक्त छंद आपके लेखन की प्राथमिकता है। आप छंदोबद्ध और मुक्त छंद काव्य के बीच कौन-सा संतुलन देखते हैं और भविष्य का साहित्य किस पथ पर अग्रसर हो सकता है?
उत्तर: मुक्त छंद स्वतंत्र अभिव्यक्ति है और छंद बद्ध कविता परंपरा व लय का आधार। भविष्य का साहित्य दोनों के संतुलित समन्वय की ओर बढ़ेगा, जहाँ आधुनिकता और परंपरा साथ-साथ चलेंगी।
प्रश्न १४. आज की युवा पीढ़ी तकनीकी माध्यमों में अधिक रम रही है। आपके अनुसार उन्हें साहित्य की ओर आकर्षित करने और उनकी साहित्यिक अभिरुचियों को जाग्रत करने का सर्वोत्तम उपाय क्या हो सकता है?
उत्तर :आज की युवा पीढ़ी तकनीकी माध्यमों से जुड़ी हुई है, इसलिए उन्हें साहित्य की ओर आकर्षित करने का सर्वोत्तम उपाय यही है कि साहित्य को उन्हीं माध्यमों से उपलब्ध कराया जाए—जैसे ई-बुक्स, ऑडियो बुक्स, पॉडकास्ट, यूट्यूब या सोशल मीडिया पर साहित्यिक सामग्री। यदि साहित्य को रोचक भाषा, विजुअल्स और डिजिटल इंटरएक्टिविटी के साथ प्रस्तुत किया जाए तो युवा न केवल उससे जुड़ेंगे बल्कि साहित्य को अपनी जीवनशैली का हिस्सा भी बनाएँगे काफी हद तक एस हो भी रहा है।
प्रश्न १५. हिन्दी साहित्य के नवाचारों में ब्लॉगिंग, डिजिटल मंच और ऑडियो-बुक्स का बड़ा स्थान है। आप स्वयं इन आधुनिक माध्यमों को किस दृष्टि से देखते हैं और इनके माध्यम से साहित्य किस प्रकार वैश्विक बन सकता है?
उत्तर : ब्लॉगिंग, डिजिटल मंच और ऑडियो-बुक्स साहित्य को वैश्विक बनाने वाले सेतु हैं। इनके माध्यम से साहित्य अब सीमाओं से परे जाकर हर वर्ग और हर भाषा के पाठक-श्रोताओं तक पहुँच रहा है।
प्रश्न १६. योग और अध्यात्म, भारतीय साहित्य की आत्मा हैं। आज की वैश्विक परिस्थितियों में क्या आप मानते हैं कि हिन्दी साहित्य योगदर्शन को नई भाषा और शैली में विश्व के सम्मुख प्रस्तुत कर सकता है?
उत्तर : जी हिंदी साहित्य योग-दर्शन को नई भाषा और शैली में प्रस्तुत कर सकता है। योग आज विश्व के लिए शांति और संतुलन का संदेश है, और हिंदी साहित्य इसे आधुनिक रूप देकर वैश्विक स्तर पर पहुँचा सकता है
प्रश्न १७. अंततः, बागी जी, आपके अनुभवों के आलोक में—आप युवा साहित्यकारों और कवियों को क्या संदेश देना चाहेंगे, जिससे वे अपने लेखन द्वारा समाज और राष्ट्र के उत्थान में सहायक हो सकें?
उत्तर :साहित्य केवल शब्दों का खेल नहीं, बल्कि सामाजिक चेतना, मानवता और नैतिक मूल्यों का संदेश है। जब युवा लेखक अपने अनुभव, संवेदनाएँ और चिंतन समाज की भलाई के लिए साझा करेंगे, तभी उनका लेखन समाज और राष्ट्र के लिए वास्तव में फलदायी होगा।
प्रश्न १८. कल्प कथा साहित्य संस्था जैसे मंचों की भूमिका के संदर्भ में— क्या आप मानते हैं कि साहित्य की चेतना अब पुनः जाग रही है?
उत्तर : मैं मानता हूँ कि कल्प कथा साहित्य संस्था जैसे मंच साहित्य की चेतना को पुनः जागृत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। ये मंच न केवल लेखकों और कवियों को अपने विचार साझा करने का अवसर देते हैं, बल्कि पाठकों को भी सक्रिय रूप से जोड़ते हैं। इसके माध्यम से साहित्य समाज में संवेदनशीलता, नैतिकता और सांस्कृतिक जागरूकता फैलाने का साधन बन रहा है, जिससे साहित्य फिर से समाज और युवा पीढ़ी के लिए प्रेरक शक्ति बन रहा है।
प्रश्न १९. आप अपने समकालीन लेखकों, दर्शकों, श्रोताओं, पाठकों, को क्या संदेश देना चाहेंगे?
उत्तर: मैं अपने समकालीन लेखकों, दर्शकों, श्रोताओं और पाठकों से यही कहना चाहूँगा कि साहित्य और कला केवल मनोरंजन का साधन नहीं हैं, बल्कि समाज और मानवता के उत्थान के लिए शक्तिशाली माध्यम हैं। लेखन, पाठन और संवेदनशील विचारों के आदान-प्रदान के जरिए हम सामाजिक चेतना, नैतिक मूल्यों और प्रेम-करुणा को बढ़ावा दे सकते हैं। इसलिए मैं सभी से आग्रह करता हूँ कि वे साहित्य और कला को केवल देखने या सुनने तक सीमित न रखें, बल्कि इसे अपने जीवन और समाज में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए उपयोग करें।
कार्यक्रम देखने के लिए कृपया लिंक पर क्लिक करें।
https://www.youtube.com/live/fXONRZSzi7Y?si=SEHi_1UtaA5fexXP
“कल्प भेंटवार्ता प्रबंधन”
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